Tamanna Ae Khaam -04

अल्फ़ाज़ हैरान सामने खड़ी लड़की को देख रही होती है फिर कुछ सोचते हुए कहती है! ” देखिये आप किस हक से मेरे घर को अपना घर कह रही है जरा आप बताने की ज़हमत करेंगी! “
” क्यों ना अंदर चल कर बातें की जाये, अगर आप को कोई मसला ना हो तो क्यों के रात काफी हो चुकी है और इस तरह रात के वक़्त बाहर खड़े होकर बातें करना मैं मुनासिब नही समझती! ” हायात ने कहा !
“जी मुझे कोई मसला नही है आप आये अंदर ! ” अल्फ़ाज़ उसे अंदर आने का कहती है!
” क्या आप मुझे एक ग्लास पानी पिला सकती हो..? काफी प्यास लगी है मुझे ! ” हयात घर के अंदर आते हुए कहती है!
” हाँ जरूर आप बैठे मै पानी लेकर आती हूँ! ” अल्फ़ाज़ कहती हुई किचेन में जाती है और पानी से भरा ग्लास लाकर हायात को देती है और कहती है!
” हाँ तो यह घर आप का कैसे है। .? मैं पिछले छे सालों से यहाँ रह रही हूँ !
” आप भले ही छे साल से यहाँ रह रही मगर बरसो से हमारा खानदान यहाँ रह रहा है.., जिन्होंने आप को यहाँ रहने दिया था वो असल में मेरे वालिद है,और मेरे बाबा का नाम फरीद हसन है ! ” हायात पानी पीते हुए कहती है! “
” मगर इन छे सालों में तो मैंने आप को कभी नही देखा इधर यहाँ तक के चाचा फरीद ने भी कभी आप का ज़िक्र नहीं किया था .! ” अल्फ़ाज़ कहती है!
” असल में कुछ वजह से मुझे घर से अलग रहना पड़ा अब वो वजह पूरी हो चुकी है तो मैं वापस आगयी.., खैर आप घबराये नही मैं आप को इस घर से निकालने नही आयी हूँ, आप आराम से रहे यह घर आप का ही है ! अब्बा ने आप को तोहफे में दी है! मगर अब मैं भी इसी घर में रहूँगी आप के साथ क्यों के ? मेरा भी इसके ऐलवा कोई दूसरा ठिकाना नही है ! ” हायात कहती है!
“अगर आप का कोई दूसरा ठिकाना नहीं है तो फिर चाचा फरीद कहा है…? ” अलफ़ाज़ पूछती है !
“जी असल में पिछले साल उनका इंतेक़ाल होगया, हमारे नये घर में मेरे भाई और भाभी रह रहे है, मेरी मौजूदगी उन्हें कुछ खास पसंद नहीं आरही थी, तो मैं वापस यहाँ आगयी !” हायात उदास अल्फ़ाज़ों में कहती है !
“मुझे अफ़सोस है चाचा का सुन कर अल्लाह उनके गुनाहों को माफ़ करे और उन्हें जन्नत नसीब करे ! ठीक है इस घर में दो कमरे है आप को तो मालूम होगा ही एक मैं इस्तेमाल करती हूँ, दूसरा आप करले! ” अल्फ़ाज़ कहती है!
” शुक्रिया..! वैसे आप का यहाँ आना कैसे हुआ..? मेरे कहने का मतलब है के आप का भी तो परिवार होगा ? ” हायात पूछती है!
” बस यूँ समझ ले के मैं यहाँ अपने माज़ी और अपनी बदकिस्मती से भाग आयी ! अपने समान को बांधे इस सोच में थी के जो कही के नही रहते वो कहा जाते है! फिर ख्याल आया कोई कही भी जाये मैं पहाड़ों में चली जाती हूँ.., सायद ऊंचाइयों में रहते रहते अपने जिंदगी की पस्तियाँ भूल जाऊँ ..! मगर मैं गलत थी आप का माज़ी कभी आप का पीछा नही छोड़ता, भले ही आप कितनी ही उंचाईयों में ही क्यों ना हो आप को नीचे देखना ही पड़ता है , ! ” नम आँख और कांपते हुए वजूद के साथ अल्फ़ाज़ यह शब्द बयां करती है फिर आँखों के कोने को साफ़ करते हुए उठ कर अपने कमरे में चली जाती है!
” अब मेरे ख्याल से हमें आराम करनी चाहिए ! ” हायात भी कहती हुई अपने कमरे में चली जाती है!
बेड से लगे हुए टेबल पर रखा हुआ सूप अभी तक गरम रहता है, अल्फ़ाज़ को भूख महसूस होती है तो वो बेड पर बैठ कर सूप पीने लगती है! आज सालों बाद उसने किसी इंसान से इतनी लम्बी गुफ्तगू की होती है ! जिससे उसे अच्छा महसूस हो रहा होता है !
” किसी से मोहब्बत इंसान को बहुत कमज़ोर बना देती है यह जानते हुए भी हम इंसान मोहब्बत करने से बाज नहीं आते , और उम्मीद करते है के सामने वाला भी हमसे हमारी जैसी वफ़ा निभाये ,जब रिश्तों में वहम पैदा हो जाये तो वहम ख्वाबों की जगह ले लेते है और ख्वाब ना हो तो ज़िन्दगी कैसी ? मुझे अपने खवाबों के टूटने से बेहद खौफ्फ़ आता था और आज देखो मैं अपने उन्ही टूटे खवाबों के बोझ तले बिना खवाहिश वाली ज़िन्दगी जी रही हूँ ! ” अलफ़ाज़ सुप के हर एक घूंट के साथ अपने दिमाग और दिल के दरमियाँ झगड़े करा रही होती है !
एक नयी सुबह का आगाज़ हो चूका होता है ! फज़र की नमाज़ और क़ुरआन _ऐ _पाक की तिलावत के बाद अलफ़ाज़ नहाने के गरज़ से घुसूल खाने में जाती है उसके ज़हन में बार बार जमे हुए पानी में गिरने और फिर माज़ी में खो जाने का खौफ्फ़ आरहा होता है ! इस बार वो अपने डर से लड़ने का फैसला कर के घुसूल खाने में बने नहाने के टब की और देखती है जिसे सायेद हायात ने पानी से भरा रखा होता है ! अलफ़ाज़ अपने कपड़े उतार कर धीरे धीरे अपने कदम बाथ टब के अंदर डालती है पानी में पैर पड़ते ही उसका वजूद कांपने लगता है तो वो डर कर फ़ौरन टब में बैठने की कोशिश करती है जिससे उसका पैर फिसलता है और वो टब के पानी में गिर जाती है !
अलफ़ाज़ के पानी में गिरते ही वो मामूली सा पानी का टब एक बड़े और गहरे नदी में तब्दील हो जाता है ! जिसकी गहरायी में अलफ़ाज़ खुद को जाते हुए देख रही होती है !
” ये कैसे हो गया यह आम सा बाथ टब नदि में कैसे तब्दील हो गया, हमेशा की तरह यह भी बहुत गहरा है , मैं इसकी गहरायी में डूबता जा रही हूँ ! मुझे साँस लेने में दिक्कत हो रही है , मेरा दम घुट रहा है और। … और मेरे जिस्म पर तो कपड़े भी नहीं है तो क्या मौत के बाद मुझे लोग बिना कपड़ो के देखेंगे ,नहीं ऐसा नहीं यह मेरे लिए बड़ी जिल्लत की बात होगी ! और अम्मी तो यह सब सुन कर ही मर जायेंगी ! और मेरे दोस्तों को कैसा महसूस होगा जब वो सुनेगे की मेरी मौत ऐसी हुई है ? या अल्लाह ऐसी ज़िल्लत वाली मौत ना दे मुझे, माफ़ करदे मुझे !” अलफ़ाज़ अपने ज़हन में खुद से कहती हुई फिर से अपने माज़ी में जाने लगती है !
माज़ी में। …
गुलाब के फूलों से सजे सेज में लाल शादी का जोड़ा पहने बैठी मिस्बाह अपने शौहर के कमरे में आने का इंतज़ार कर रही होती है ! वो खुश होकर कभी गुलाबों सा महकता अपना कमरा तो कभी अपने हाथों की मेहँदी और अपने पसंद की लाल चुड़ियों को देख रही होती है !
घड़ी की सुई ने रात 10 बजे का वक़्त होने का ऐलान कर दिया होता है ! घर के ऊपर के मंज़िल पर बने कमरे में अकेली बैठी मिस्बाह को बार बार उबासियाँ आरही होती है उसकी आँखों में नींद भरा होता है साथ में उसे यह डर के अगर शौहर कमरे में आगये और मुझे सोता देखा तो क्या सोचेंगे ? के शादी की पहली रात मैंने उनका इंतज़ार नहीं किया और सोगयी ! आखिर के इंतज़ार करते करते वो रात ग्यारह बजे सो ही जाती है !
सोते हुए में उसे अचानक महसूस होता है के कोई दो आँखे उसे काफी वक़्त से घूर रही है ! हिम्मत कर के वो फ़ौरन अपनी आँखे खोल ती है तो देखती है के सामने उसके पैरों के पास कोई काली सी परछायी बैठी हुई है जो लगातार उसे देख रही होती है ! मिस्बाह का डर से बुरा हाल होजाता है वो फ़ौरन क़ुरानी दुवाओ को पढ़ कर खुद पर दम करने लगती है फिर उसकी दोबारा आँख लग जाती है ! कुछ वक़्त बाद उसे यूँ महसूस होता है के जैसे कोई उसके चेहरे के पास बैठा हो वो जैसे ही आँखे खोलती है वही काली परछायी अब उसके चेहरे के पास उसे झुक कर देख रही होती है ! मिस्बाह डर से अपने आँखे बंद कर के फ़ौरन क़ुरानी दुवाओ को कसरत से पढ़ने लगती है डरते हुए इस तरह फिर से उसकी आँख लग जाती है ! अभी वो आधी अधूरी नींद में ही रहती है के उसे महसूस होता है के कोई उसके रुखसार के बोसे ले रहा है वो हड़बड़ा कर उठ बैठी है तो सामने उसका शौहर काशिफ होता है !
” जी अस्सलाम_ओ _अलैकुम कब आये आप। ..? ” मिस्बाह अपने सर पल पल्लू लेते हुए कहती है !
“वालेकुम अस्सलाम बस अभी अभी आया तो देखा तुम सो रही ,तो सोचा तुम्हे थोड़ा मोहब्बत से उठाऊँ , जरा एक मिंट रुकना मैंने तुम्हारे लिये कुछ रखा है !” काशिफ कहता हुआ मेज़ के दराज से तीन गुलाब के फूल लाकर मिस्बाह के हाथ में थमाते हुए कहता है !
” यह लो गुलाब ,तुम्हे बहुत पसंद है ना !”
“जी हाँ मुझे गुलाब के फूल और इनकी मेहक बहुत पसंद है, आप ने लाइट ऑन क्यों नहीं किया ? ऑन कर ले फिर हम बातें करेंगे मैं सो रही थी इसलिए मैंने बंद करदी थी !” मिस्बाह कहती देती है !
” भला आज की रात रौशनी की क्या जरुरत है , तुम्हारा हुस्न काफी है इस कमरे और मेरे लिये !” काशिफ कहता है !
तभी मिस्बाह को वही परछायी आतिफ के पीछे खड़ी दिखती है !
” अम्मी मुझे बचा ले !” मिस्बाह कहते हुए डर कर काशिफ के गले लग जाती है !
” मुझे नहीं मालूम था मेरे तरह तुम्हे भी बेशबरी है आज के रात के लिए !” काशिफ कहता है !
“नहीं… नहीं ऐसी कोई बात नहीं है , मैं वो बस डर गयी थी मुझे लगा के कमरे में कोई खड़ा है आप लाइट ऑन कर दे ! ” मिस्बाह डरते हुए कहती है !
“तुम पागल हो कमरे में कोई भी नहीं है, चलो डरो नहीं आओ बेड पर आराम करो ! ” आतिफ कहता है तो मिस्बाह आकर बेड पर लेट जाती है तो फ़ौरन ही आतिफ उसके ऊपर आकर लेट जाता है !
” यह क्या कर रहे है आप उतरे पहले दो रकात नमाज़ अदा करे इससे हमारे रिश्ते में मजबूती आयेगी , फिर मुझे आप को अपने हाथों की मेहँदी भी दिखानी है , मेरे दोस्तों ने कहा है के आप अपना नाम पहले उसमें ढूंढेंगे फिर कोई बात आगे बढ़ेगी !” मिस्बाह बड़े ही मासूमियत से कहती है मगर अंदर ही अंदर उसे खौफ्फ़ भी महसूस हो रहा होता है !
“मेरा नाम तो तुम्हारी तक़दीर में लिखा जा चूका है भला उसे किसी मेहँदी में क्या ढूढ़ना ?” काशिफ मिस्बाह के जिस्म से दुपट्टा हटाते हुए कहता है !
नाईट बल्ब की रौशनी में मिस्बाह पल पल अपने खवाबों का क़त्ल होते महसूस कर रही होती है ! वो तीन गुलाब के फूल अब भी उसके हाथों ने मजबूती से थमा हुआ होता है जो उसके हथेलियों में पिश रहे होते है , उसके हाथ बार बार बेड पर सजे सेज में जा लगती है जिनमें अनगिनत कांन्टे मौजूद होते है जो उसके कोमल हाथों को जख्मी कर रहे होते है !, मगर मिस्बाह को अभी जो दर्द हो रहा था वो किसी कांटे के चुभने से भी कई ज्यादा होता है ! पूरी रात दर्द और बेदारी में गुजरती है, बहुत कुछ बातें करनी थी उसे अपने शौहर से मगर उसने उसे मौका ही नहीं दिया होता है !
” मिस्बाह बेटा उठो सात बज रहे है तेरा शौहर तो कब का उठ कर बाहर चला गया !” मिस्बाह की मामी उसके कमरे में आती हुए कहती है जो के रश्म के मुताबिक उसके साथ उसके ससुराल आयी होती है !
“जी उठ रही हूँ !” मिस्बाह कहते हुए जैसे उठने की कोशिश करती है वो वापस से बेड पर गिर जाती है !
मामी जल्दी से मिस्बाह को थामते हुए कहती है ! उन्हें बिस्तर पर चरों तरफ मिस्बाह की टूटी चूड़ियाँ बिखरी हुई दिखती है ! जिसे वो नज़र अंदाज़ करदेती है ! ” क्या हुआ मिस्बाह बेटा ? सब ठीक है ना ? “
“जी मालूम नहीं मैं बस उठ नहीं पारही हूँ !” मिस्बाह ने जवाब दिया !
” तेरे शौहर ने कल रात में तुझसे अच्छे से तो बात की थी….? मेरा मतलब उनका रवैया सही तो था ना तेरे साथ !” मामी बातों को समझ चुकी होती है फिर भी वो पूछती है !
” जी। .. जी मामी वो बस पता नहीं मेरे कमर में बहुत दर्द होरहा है ! ” मिस्बाह कहती है !
बेचारी क्या बताये के शादी की पहली रात को उसके शौहर ने उसके साथ जबरदस्ती की उसके मर्ज़ी के बगैर उसे रात भर अपने हवस का शिकार बनाता रहा ! उसके हाथों में अब भी वो तीन गुलाब के फूल होते है मगर अब उनके सारे पंखुड़िया झड़ चुकी होती है !
“अच्छा कोई बात नहीं दर्द की दवा खा लेना सब ठीक हो जायेगा ! मगर तुम इतना डरी और सेहमी हुई सी क्यों हो ? ” मामी उसे परेशान देख कर पूछती है !
असल में मामी बात यह है के कल जब आप मेरे कमरे से चली गयी तो मैं सो गयी थी तभी मैंने अपने पैरों के पास किसी काली परछायी को बैठा देखा , मैं डर से दुआ पढ़ती हुई जब वापस सो गयी तो फिर वो मुझे मेरे चेहरे के पास बैठा दिखा उसकी आँखे नहीं दिख रही थी मगर महसूस हो रहा था जैसे वो मुझे घूर रहा है ! ” मिस्बाह कहती है !
” अरे बेटा यह सब आम बात है ,अक्सर नयी दुल्हन के साथ ऐसे वाक़्यात पेश आते है ! उसकी वजह होती है खुशबु जो अक्सर निकाह के बाद नयी दुल्हन के जिस्म से निकलती है जिसे महसूस कर के कोई दूसरी मखलूक पीछे पड़ जाती है ! यही वजह है के नयी दुल्हन को अकेले नहीं छोड़ा जाता है और इसी लिये तो मैं तेरे साथ भेजी गयी थी ताके शादी के माहौल में कोई तुम्हे कमरे में अकेले ना छोड़ दे , मगर कहते है ना जिसका डर हो वही होता है ! ” मामी कहती है !
” आप फिक्र ना करे मैंने दुआ तो पढ़ लिया था ! अब चले मुझे फ्रेश होना है ! ” मिस्बाह थके थके अल्फ़ाज़ों में कहती है !
” हाँ ठीक है चलो ! ” मामी कहती है फिर वो मिस्बाह को अपने साथ बाथरूम लेकर जाती है !
बाथरूम में मिस्बाह बार बार अपने हाथ की मेहँदी को देखती है जिसपर उसने बड़े ही प्यार से आतिफ उर्दू में लिखवाया हुआ होता है , उसकी आँखों से जारो क़तार आँसू बहने लगते है ! वो जग में पानी लेकर अपने मुंह पर जोर जोर से पानी के छींटे मारने लगती है !
तभी उसे महसूस होता है के कोई उसे खींच कर के पानी से बाहर निकाल रहा है ! और उसका सर एक झटके से टब के पानी के बाहर होता है ! उसे तेज़ खाँसी आती जिसके बाद वो कुछ देर तक पानी की उल्टियाँ करती है ! हायात उसकी पीठ को सहला रही होती है !
“अलफ़ाज़ क्या होगया है तुम्हे…? अगर मैं वक़्त पर नहीं आती तो शायद आज तुम… ? और फिर मैं भाई को क्या जवाब देती ? ” हायात कहते कहते खामोश हो जाती है !
” दूर हटो मुझसे और भाई को जवाब मैं कुछ समझी नहीं हयात.. ?'” अलफ़ाज़ खुद को संभालते हुए पूछती है !
” कुछ भी नहीं पहले तुम यहां से बाहर निकलो और यह टॉवल जिस्म में लपेटो चलो कमरे में देखो क्या हाल बना रखा है तुमने खुद का..?” हायात अलफ़ाज़ के जिस्म पर टॉवल लपेटते हुए कहती है ! फिर वो अलफ़ाज़ को थामे उसे उसके कमरे में लेजाकर उसके बेड पर बैठा देती है !
” आप मेरे कमरे से बाहर जायेंगी मुझे कपड़े पहनने है !” अलफ़ाज़ गुस्से में कहती है !
” ठीक है जब तक तुम कपडे पहनों मैं तुम्हारे लिये नास्ता लेकर आती हूँ !” हायात कह कर नास्ता लेने चली जाती है !
अलफ़ाज़ कपड़े पहन कर खुद ही कमरे से बाहर आकर अपने लिये नास्ता तैयार करती है और नास्ते की टेबल पर बैठ कर खाने लगती है !
” अगर तुम बुरा ना मानों तो क्या मैं तुम्हारे माज़ी के बारे में जान सकती हूँ। .. ? मुझे जानना है के आखिर कौनसी ऐसी बात है जिसके वजह से तुम इंसानों से दूर भगति हो , अपना सब कुछ छोड़ कर यहाँ आगयी यहाँ तक के अपनी माँ तक को भी छोड़ दिया तुमने …. ? ” हयात आजिज़ी के साथ अल्फ़ाज़ के सामने चाय रखते हुए पूछती है !
” माफ़ करियेगा मैं अपनी निजी ज़िन्दगी और उससे जुड़ी बातों को किसी से भी शेयर करना पसंद नहीं करती बहतर होगा के आप मुझसे दूर ही रहे वरना मुझे यह घर भी छोड़ कर जाना होगा ! ” अलफ़ाज़ नाराज़ होते हुए कहती है !
“हम्म …. तुम्हे मालूम है इस घर में दो नहीं बल्के तीन कमरे है और वो कमरा ऊपर की तरफ है जिसमें एक बालकोनी भी है जिससे पूरा शहर और खास कर चांदनी रात काफी खूबसूरत दीखता है मुझे मालूम है तुम्हे चाँद को देखना बेहद पसंद है , तो..! ” हायात अलफ़ाज़ की बात काटते हुए कहती है !
” तो। .? क्या ? ” अलफ़ाज़ पूछती है !
” तो आज रात वहाँ हम मेरी हाथ की बनी चाय पियेंगे और तुम मुझे सब बताओगी जो अब तक तुम्हारे अंदर तुमने दबा रखा है ! ” हायात हलकी मुस्कराहट के साथ कहती है !
” तुम्हारे घर में दो कमरे है या तीन ,बालकनी है या नहीं मुझे इनसब से कोई मतलब नहीं , इतनी ही अच्छी चाय बनाती हो ना तो खुद पी लेना बालकोनी में अकेले बैठ कर चाँद को निहारते हुए , मुझसे किसी तरह की उम्मीद मत रखो , खुदा के वास्ते मुझे अकेला छोड़ दो मेरे हाल पर !” अलफ़ाज़ गुस्से में कहते हुए अपने शॉप , और स्कूटी की चाभी लेकर जाने लगती है !
“हम सब अपनी ज़िन्दगी में कही ना कही अकेले होते है तो क्यों ना आज मिल कर दर्द बांटा जाये तुम आज जरा जल्दी घर आ जाना मैं इंतज़ार करुँगी चाय पर तुम्हारा !” हयात मुस्कुराते अलफ़ाज़ के पीछे जाते हुए कहती है !
अलफ़ाज़ गुस्से में स्कूटी चालु कर घर से चली जाती है !
क्रमशः Tamanna_Ae_Khaam-05
Previous Part: Tamanna_Ae_Khaam –03
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शमा खान
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