Beti Rahmat Ya Zahmat

Beti Rahmat ya Zahmat 01

Beti Rahmat Ya Zahmat
Beti Rahmat Ya Zahmat

एक औरत जब वो बेटी होती है, अपने वालदैन के लिए जन्नत के दरवाज़े खोल देती है। जब वो बीवी बनती है, शौहर का आधा दीन मुकम्मल कर देती है। जब वो माँ बनती है, जन्नत उसके क़दमों में होती है।

सुभान अल्लाह!

ये मर्तबा है एक औरत का दीन-ए-इस्लाम में। बेटियाँ किस्मत वालों के घर पैदा होती हैं।

आज कई लोग ऐसे हैं जो लड़के को बेहतर औलाद मानते हैं, उसे नस्ल का चिराग़ समझते हैं और उसकी परवरिश बड़े शौक़ से करते हैं। लेकिन जब बेटी पैदा होती है, तो घर में मातम जैसा माहौल हो जाता है। बेटी का इस्तकबाल और परवरिश ख़ुशी से नहीं की जाती।

इन्हे रहमत नहीं बल्के एक ज़हमत समझा जाता है ! ऐसी ही एक कहानी है शबनम की जो आयी तो थी अपने माँ बाप के घर रहमत बन के मगर उसे ज़हमत समझा जाता रहा !

उत्तर प्रदेश के शहर बरेली के करीब कस्बे बहेड़ी में ऑटो चालक रहमत अहमद का घर होता है ! दो कमरों का छप्पर का पुराना घर रहमत की ही तरह बूढ़ा हो चुका होता है ! जिसमें रहमत अहमद उनकी बीवी फरज़ाना और तीन जवान बेटियाँ , शबनम , शबाना ,शबीहा और एक बेटा शोहेल रह रहे होते है !

रहमत अहमद की तीनों बेटियाँ जिस्मानी हिसाब से काफी ज्यादा मोटी होती है ,शबनम को छोड़ कर बाकी दोनों बेटियाँ मोटी होने के साथ रंगत में सांवली भी होती है जिस वजह से रहमत को इनके रिश्ते करने में काफी परेशानी आरही होती है ! क्यों के हर किसी को रिश्ते के लिये लड़की पतली खूबशूरत साथ साथ अच्छा खासा दहेज़ भी चहिये होता है !

“शबनम के अब्बू आप कही ऐसा रिश्ता क्यों नहीं तलाश करते जो बिना दहेज़ लिये हमारी बेटियों को अपना ले ! आखिर कब तक ये तीनों हमारे दरवाज़े बैठी रहेंगी उमर निकल रही इनकी शादी करने की !” फरज़ाना रहमत के काम से वापस आते ही कहती है !
“बेगम मैं खुद अपनी बेटियों के लिए परेशान रहता हूँ…! आज ही शबनम के लिये एक रिश्ता मिला है यही हमारे बहेड़ी का रहने वाला लड़का है नाज़िम नाम है लड़के का ,

बिहार में फर्नीचर का काम करता है देखने में ठीक ठाक है , घर में उसकी माँ और तीन छोटी बहने है बड़ी बहन का निकाह हो चुका है और वालिद हयात से नहीं है ! कल ही लड़के की माँ और बहने आयेंगी शबनम को देखने !” रहमत कपड़े बदलते हुए कहते है !

“उनको हमारी शबनम पसंद तो आजायेगी ना…? और दहेज़ कितना मांगा है उन्होंने ? ” फरज़ाना परेशान होते हुए कहती है…!
” उनको दहेज़ नहीं चहिये ना हमारी शबनम के मोटी होने से उन्हें कोई ऐतराज है उन्हें सिर्फ काम काजू लड़की चाहिये जो उनका घर संभाल ले..!” रहमत पानी की घूंट लेते हुए कहते है !


“अल्लाह का शुक्र है बस शबनम का ब्याह हो जाये के हमारे सर से एक बोझ कम हो…! उसके बाद शबाना और शबीहा की भी शादी जल्द करनी है !” फरज़ाना खुश होते हुए कहती है !

“शबनम की अम्मी बातें बाद में करेंगे मुझे खाना खिला दो पहले…!” रहमत कहते है..!

अगले दिन शबनम को देखने नाज़िम की माँ और बहन आती है ! और उसे अपने बेटे के लिए पसंद कर लेती है ! कुछ ही दिनों में शबनम का निकाह नाजिम से हो जाता है और वो अपने ससुराल चली जाती है !

शबनम और नाजिम की शादी सुदा जिंदगी बेहतर कट रही होती है..! दोनों मिया बीवी में बेइंतहा मोहब्बत रहती है..! नाजिम सबनम का बहुत ख्याल रखता है..! सबनम को तो खुद की किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा होता है के उसे इतना अच्छा रिश्ता कैसे नसीब हो गया..! शादी के तीन महीने बाद ही नाजिम वापस अपने काम पर वापस बिहार चला जाता है..!

नाज़िम को बिहार गये कई रोज गुजर जाते है मगर वो एक बार भी कॉल कर के शबनम की खैरयत नहीं लेता है ! जब भी कॉल करता अपनी अम्मी बात कर के कॉल रख देता ! इधर शबनम परेशान रहने लगती है के आखिर क्या वजह है के नाज़िम मुझसे बात नहीं कर रहे ? धीरे धीरे उसकी सभी नन्दे घर का काम करना छोड़ देती है वो सभी सारा सारा दिन घर पर पड़ी गप्पे मारती रहती ! इधर बेचारी शबनम को अब घर के सारे काम अकेले ही करने पड़ रहे होते है !


“ऐ लड़की मैं नहाने जा रही जब तक में नहा के वापस आती हूँ तब तक तुम मेरा कमरा साफ़ करदो !” शबनम की सास कहती हुई नहाने चली जाती है !
शबनम हाथ में झाड़ू लिये अपने सास के कमरे की सफाई करना शुरू करदेती है ! अभी उसे सफाई करते हुए कुछ ही वक़्त गुजरा होता है के उसके सास के फ़ोन पर कॉल आती है जब वो मोबाइल उठा के देखती है तो वो कॉल नाज़िम का होता है ! नाज़िम का कॉल देखती ही शबनम के लबों पर मुस्कराहट आजाती है ! शबनम फ़ौरन ही कॉल उठा लेती है और कहती है !


“अस्सलाम ओ अलैकुम कैसे है आप…? मैं शबनम बोल रही !”
“वालेकुम अस्सलाम, मैं ठीक हूँ अम्मी कहा है…? और उनका फ़ोन तुम्हारे पास ?
“अम्मी नहाने गयी है और मैं उनके कमरे की सफाई कर रही थी तभी आप की कॉल देखी तो उठा ली…!” शबनम कहती है !
“अच्छा! और बताओ तुम कैसी हो ?” नाज़िम पूछता है !


“मैं कैसी हूँ ? ये अब ख्याल आ रहा आप को , आप को गये महीनों होगये और आप ने मुझसे एक बार भी कॉल कर के हाल पूछा न मुझसे कभी बात की !” शबनम नाराज़ होते हुए कहती है !
“असल में मैं काम में इतना मशरूफ रहने लगा के मुझे मौका ही नहीं मिलता था तुमसे बात करने का कभी अम्मी को कॉल कर के उनसे ही सब की खैरियत ले लेता हूँ, वैसे भी तुम्हे किस बात की दिक्कत है अम्मी और मेरी बहने तुम्हारा ख्याल तो रख ही रही है…!” नाज़िम कहता है !


“मगर मुझे आप की भी जरूरत है… , मेरा भी मन होता है आप से बात करने का !” शबनम कहती है ! , इससे पहले के वो कुछ और कहती या नाज़िम का जवाब दूसरे तरफ से आता उसकी सास आकर फ़ोन उसके हाथ से छीन लेती है फिर खुद अपने बेटे से घंटो बात करती है..! बेचारी शबनम खड़ी सास का मुँह तकती है ! शबनम को पहली बार अपने सास की ये हरकत नागवार गुज़री मगर वो करती भी किया ? खुद में सोचती है के

इन तीन महीनों में वो सिर्फ तीन मिनट ही अपने शौहर से बात कर पायी इस घर में उसे अपने शौहर से भी बात करने की इजाजत नहीं है !आखिर लोग अपने बेटे की शादी ही क्यों करते है ? जब वो अपने बेटे को बहु के साथ बांट नहीं सकते !” वो बेचारी अपने सोचों से उलझते हुए वापस अपने काम में लग जाती है ! और इसी तरह दिन गुजरते रहते है !

“अम्मी कई दिन गुजर गये है मैं अपने मायके नहीं गयी हूँ आप की इजाजत हो तो मैं आज चली जाऊं अम्मी अब्बा और बहनों से मिलने का मन हो रहा है..!” शबनम घर का काम समेटते हुए कहती है !
“घर का काम कौन करेगा…? तेरे माँ बाप ? क्यों के नौकर भेजने की तो उनकी औक़ात है नहीं ! चल जा और चुप चाप से काम कर ! बड़ा आयी मायके जाने वाली !” शबनम की सास खिस्या कर तंज लहजे में कहती है !


अपनी सास का जवाब सुन कर सबीना खामोश होजाती है और मन ही मन सोचती है के ! ” काश के नाज़िम से मेरी एक बार अच्छे से बात हो जाये तो सभी दिल की बातें बताउंगी उन्हें !
तभी सामने दरवाज़े पर उसकी नज़र पड़ती है ! सामने नाज़िम हाथ में बैग लिए घर में दाखिल हो रहा होता है ! नाज़िम को घर में आता देख शबनम बे इन्तहा खुश होती है !


नाज़िम शबनम को नज़र अंदाज़ कर के बैग लिये सिधा अपनी अम्मी के पास जाकर बैठ जाता है !

शबनम का सारा दिन घर के कामों में गुजर जाता है ! वो घर के काम करते हुए बार बार अपने शौहर को निहार रही होती है मगर दो मिनट भी उसकी बात नाज़िम से नहीं हो पाती है ना ही नाज़िम ने उसके तरफ नज़र उठा के देखा होता है ! नाज़िम खाना खा कर सारा दिन अपने माँ और बहनों के साथ बातें करता रहता है वो एक बार भी नज़र उठा कर शबनम की तरफ नहीं देखता है !

खैर किसी तरह दिन गुजर जाता है और रात अपने पैर पसार देती है ! घर का काम मुकम्मल कर के शबनम सब को खाना खिला कर फारिग होकर अपने कमरें में बिस्तर पर लेटी करवटें बदलती हुई अपने शौहर का कमरे में आने का इंतज़ार कर रही होती है ! उस के ज़हन में बहुत सी बातें होती है जो उसे अपने शौहर से करनी होती है, नाज़िम का इंतज़ार करते करते शबनम की आँख लग जाती है ! मगर नाज़िम कमरे में नहीं आता है !

क्रमशः BETI-Rahmat ya Zahmat-end

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शमा खान

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“बेगम मैं खुद अपनी बेटियों के लिए परेशान रहता हूँ…! आज ही शबनम के लिये एक रिश्ता मिला है यही हमारे बहेड़ी का रहने वाला लड़का है नाज़िम नाम है लड़के का ,

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“बेगम मैं खुद अपनी बेटियों के लिए परेशान रहता हूँ…! आज ही शबनम के लिये एक रिश्ता मिला है यही हमारे बहेड़ी का रहने वाला लड़का है नाज़िम नाम है लड़के का ,

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“बेगम मैं खुद अपनी बेटियों के लिए परेशान रहता हूँ…! आज ही शबनम के लिये एक रिश्ता मिला है यही हमारे बहेड़ी का रहने वाला लड़का है नाज़िम नाम है लड़के का ,

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