Hareem

Hareem-Ek Dastaan 01

हरीम – एक दास्तान 01

अहले सुबह नहा कर वो अपने गीले बाल सुखाने के गर्ज से छत पर जाती है…! खिली खिली धुप और ठण्डी बहती सर्द हवायें उसकी खुली जुल्फों को छू कर बार बार गुज़र जाती ! वो बस एक टक अपने छत के एक कोने पर बे परवाह , खामोश सी खड़ी सामने तालाब के ठहरे हुए पानी को हवा के झोंकों से हिलते हुए देख रही होती है ! जब जब हवा तालाब के पानी को छूती उस पर पड़ रहे सूरज का अक्श भी धुंधला सा जाता है , ना जाने वो हिलते पानी में क्या तलाश कर रही होती है ? धुंधले सूरज का खूबसूरत अक्श या खुद का वजूद जो अब ज़िन्दगी के मुश्किलों की धुंध में कही खो सा गया होता है! 

“25 साला ‘ हरीम अनम अहमद’ जिसे लोग मरहूम असफाक अहमद की लाड़ली बेटी और कासिम अहमद की छोटी बहन के नाम से जानते थे , मानों उसकी खुद की कोई पहचान ही ना हो ! हरीम झारखंड की राजधानी के शहर राँची की रहने वाली एक तलाक शुदा लड़की होती है! तलाक के बाद से ही उसने खुद को एक दायरे के अंदर कैद कर रखा होता है , ना ज्यादा किसी से मिलना ,ना ज्यादा हँसना बोलना ,और ना ही  कही घूमने जाना जो पहले तो बड़ी खुश मिज़ाज़ रहा करती थी मगर अब जिंदगी के उतार चढ़ाओ ने उसे थोड़ा खामोश बना दिया होता है! 

मुश्किल वक़्त आते ही उसके अपने दोस्तों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया होता है..! उसके पास अपनी दिल की बात करने के लिए कोई भी मौजूद नहीं होता है..! इसलिए वो अक्सर तालाब में पड़ते धुंधले सूरज के अक्स को देखते हुए अपने डायरी के पन्नों में अपने मन की बात लिखती रहती वो अक्सर खुद को तलाशती रहती..! उसकी डायरी के पन्नों पर स्याही के साथ-साथ  आंसुओं के चंद धब्बे भी बिखरे हुए मिल जाते..!  कभी-कभी तो वो इतना ज़्यादा लिखती कि कलम के निशान कागज़ को छेदने लगते, मानो वो अपने दर्द को लफ्जों में कैद करके खुद को हल्का करना चाहती हो..!”

चार साल पहले की ही तो बात  है जब हरीम की शादी अतिफ से हुई थी जिसे उसके लिए के उसके बड़े भाई ने पसंद किया था..! वैसे भी एक मिडिल क्लास परिवार में रिश्ता करते वक़्त सायेद ही कभी लड़की से उसकी पसंद पूछी जाती हो ! 

मगर हरीम फिर भी खुश थी, उसने अपनी पसंद की हर चीज अपने शादी के मौके पर ली थी..! अपने दोस्तों के साथ उसने अपनी नई जिंदगी शुरू होने का जशन भी मनाया था मगर उसे क्या मालूम था के उसका अतीफ के साथ निकाह एक गहरे जख्म में बदल जाएगा..!

शादी के कुछ दिन के बाद से ही अतिफ बात बात पे हरीम पर हाथ उठाता, उसे अपने घर वालों के सामने बे-इज्जत और जलील करता, गालिया देता था..!

 हरीम कुछ दिन तक तो सब सहती रही अपने रिश्ते को बचाने के गरज से मगर शादी के सिर्फ दो माह ही हुए थे और हरीम को इसलिए अतिफ ने बेइंतेहा मारा होता है के वो उसे बाप बनने का सुख नही दे पा रही थी , अतिफ और उसके सभी घर वाले हरीम को बांझ कह कर ताना मारने लगते..! तरह तरह की गालियाँ देते..! जब हरीम अपने अम्मी और बड़े भाई से इन सब बातों का जिकर करती तो वो उसे कुछ दिनों मे सब खुद बहतर हो जायेगा और सब्र करने का कह कर टाल जाते, आखिर इतनी जिल्लत कब तक सहती वो , सिर्फ दो महीने में उसकी ज़िन्दगी अज़ाब बन कर रह गयी थी.,.! 

थक हार कर उसने राँची हाई कोर्ट से तलाक़ के पेपर बनवाये फिर आतिफ से खुला लेकर खुद को आज़ाद करा लिया इस बे-तुके और बे-मतलब के रिश्ते से..! पिछले तीन सालोँ से वो अपने मायके में अपने अम्मी और बड़े भाई कासिम और भाभी रज़िया एक प्यारा सा दो साला भतीजा ज़मन के साथ रह रही होती है..! बे-इन्तेहाँमोहब्बत करने वाले वालिद का साया उसके सर पर से उस वक़्त उठ गया था जब वो आतिफ से तलाक़ लेकर अचानक से मायके आगयी थी..!

 हरीम के पापा उसके तलाक़ की बात को बर्दास्त नहीं कर पाये और फिर उनकी मौत दिल के दौरे पड़ने से वाकय होगयी थी !

 तब से लेकर आज तक उसे ही उसके वालिद के मौत का जिम्मेदार माना जाता रहा है ! भला कोई बेटी कभी चाहे गी के उसके मां बाप के मौत की जिम्मेदार वो बने ..! अक्सर रातों में जब वो सोने की कोशिश करती तो उसे अपने पापा का चमकता हुआ चेहरा और उनकी मोहब्बत याद आती..,वो अक्सर खुद से सवाल करती क्या सच में उसने अपने फैसले से अपने पापा का दिल तोड़ दिया था..? इस सवाल ने उसे अन्दर ही अन्दर खोखला कर दिया होता है..! मगर जवाब कौन देता दुनिया के लोगों ने तो उसे बिना किसी ट्रायल के मुलजिम साबित कर ही दिया होता है..! “

और यही इल्ज़ाम उसके दिल पर ऐसे बोझ बन चुका होता है जिसके नीचे दबकर वो हर रोज़ अपने वजूद से लड़ती रहती..! लोग तो सिर्फ़ उंगली उठाते रहे मगर किसी ने उसकी आँखों में झाँक कर ये जानने की कोशिश तक न की के वो अंदर से कितनी टूटी हुई है ! उसे भी अपने अपनों की प्यार और सहारे की जरूरत है..! 

मोहल्ले की औरतें जान बूझकर हरिम के सामने तलाक की कहानियाँ सुनातीं..! उस पर ताने कस्ती ..! अक्सर मोहल्ला की औरतें उसे देखकर अपनी बेटियों को दूर खींच लेती और हरीम से बात ना करने का कहती..! “उसका दिल चाहता कि वो अपनी माँ से गले लगाकर अपने मन का बोझ हल्का कर ले, मगर माँ  उसे कभी समझ ही नहीं पाई..! हर बार जब भी उन्हें मौका मिलता वो हरीम को जलील करती रहती..! उसे एहसास दिलाते रहती के तुमने तलाक लेकर बहुत बड़ी गलती करदी है..!  उसने अपनी मां से अपना दर्द बाँटने की कोशिश की तो उनसे उसे सिर्फ जिल्लत और रुसवाई ही मिली..! वो अपने परिवार के साथ एक छत के नीचे रहते हुए भी खुद को अजनबियों जैसा पाती..!

छत पर खड़ी हरीम अपनी आँखें मूंद कर बहती ठंडी हवाओ को महसूस करती है और सोचती है..! 

“बाज दफा हम जिंदगी से कितना मायूस हो जाते है..! क्या सच में तलाक शुदा होना एक गाली है..? क्या एक औरत का अपनी खुशी और इज़्ज़त के लिए लिया गया फैसला इतना गलत हो सकता है के उसके बाप को दिल का दौरा पड़ जाए..?

क्या छोड़ी हुई लड़कियां अपनाई नहीं जाती..?

 ये सवाल उसके मन में एक ज़ख़्म की तरह हर पल ताज़ा होते रहते, जिस पर समाज और अपने नमक छिड़कते रहते..!”

क्रमशः 02
shama Khan

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