Hareem

Hareem-Ek Dastaan 02

हरीम – एक दास्तान 02

“हरीम हरीम….. अभी तक छत पर क्या कर रही है बेटा..? नीचे आजा गुसल खाने में कुछ कपड़े है धुले हुए छत पर डाल आ..!” हरीम की अम्मी उसे आवाज़ देती है तो वो अपने ख्यालों की दुनिया से हकीकत की दुनिया में वापस लौट आती है..!

 “जी अम्मी अभी आयी..!” कहते हुए हरीम नीचे आजाती है और गुसुल खाने से कपड़े उठा कर छत पर सूखने के लिए डाल आती है..! छत पर कपड़े सुखने के लिये डालने के बाद वो अपने ऑफिस जाने की तैयारी करने लगती है ! 

तो हरीम की अम्मी उसके पास आकर कहती है..! “आज लड़केवाले पहली बार तुझे देखने आ रहे है इससे पहले जो भी रिश्ता आता हम मना कर देते ताकि तुझे संभालने का थोड़ा वक़्त मिल जाए मगर ये रिश्ता तेरे लिए बेहतर है तो थोड़ा जल्दी ऑफिस से घर आजाना वो लोग कासिम के पहचान के है और हाँ ढंग से तैयार होकर ही उनके सामने आना..!  पहले एक दूसरे को देख समझ लेना अच्छे से फिर हाँ या ना कहना ! ” अम्मी ने हरीम को समझाते हुए  कहा..!

 “अम्मी कितनी बार कहा है के मेरे लिये रिश्ते मत देखा करो ..! ये रिश्ता भले ही कितना ही अच्छा हो मगर नही करनी है मुझे शादी..! मुझे शादी के नाम से ही उलझन होती है..! अब चलो जल्दी से नास्ता लगा दो मुझे ऑफिस निकलना है लेट हो जाऊंगी..! ” हरीम चिढ़ते हुए नासते की टेबल पर बैठते हुए कहती है..!

 “क्यों नही करनी तुझे शादी आखिर दिक्कत क्या है..?” अम्मी नास्ता का प्लेट हरीम के सामने गुस्से में रखते हुए कहती है..!

 “अम्मी..! आराम से खाने की चीजों पर गुस्सा नही और वैसे आप को तो अच्छे से मालूम है के मुझे शादी से क्या दिक्कत है..?’ फिर भी वही सवाल..? अब आप मेरा सर ना खाये मुझे आराम से नास्ता करने दे..! ” हरीम अपनी अम्मी को चुप रहने का कह कर नास्ता करने लगती है!

 “कौन सी किताब में लिखा है के पहली शादी टूट जाये तो दूसरी भी टूट जायेगी..! “अम्मी गुस्से में कहती है..!

“ अम्मी मेरी किताब में टूटना लिखा है जुड़ना नहीं..!” हरीम कहती है..!

“किसने कहा के तेरी किस्मत में टूटना लिखा है नजर उठा के तो देख जिनकी भी पहली शादी टूटी है ‘अल्हमदोलिल्लाह ‘ ज्यदातार की दूसरी शादी हुई और बहतर भी निकली है..!” अम्मी गुस्से भरे लहजे में कहती है..!

“अम्मी यह सच है दूसरी शादी कामयाब हुई है..!” मगर सिर्फ मर्दो की जो खुद तो 40-50 के होते है मगर उन्हे 19-20 साल की लड़कियों के साथ बियाह दिया जाता है ,,,उन बुड्ढों की तो मौज हो जाती है उन्हे कच्ची कलिया जो तोड़ने को मिल जाती है,,,,,,,मगर उन बेचारी लड़कियों का हाल पूछो…’’’ जिनसे तो उनकी मर्जी भी नही पूछी जाती और उन्हे गरीबी का नाम देकर किसी बुड्ढे के साथ बांध दिया जाता है ! साथ में यह भी सिखा दिया जाता है के मरो मगर वही रहो आखिर बेचारी करे भी तो क्या..? इसलिये सब्र कर के पड़ी रहती है..!” हरीम चिढ़ते हुए कहती है!

 “बेटा जिनकी होती है होने दे,,, हम तो तेरे लिये कोई ऐसा रिस्ता नही लेकर आये है जो किसी बुड्ढे की हो..! 

हाय…! काश के हम भी तुझे वही तालीम देते जो उन लड़कियों को उनके माँ बाँप ने उन्हें दिया कम से कम दो बातें बर्दास्त कर के अगर तुम भी रहती तो आज तेरा भी घर बसा होता और तुम भी अपने भाई बाप की दहलीज़ पर बैठने के बजाये अपने शौहर के घर पर अपने बच्चों के साथ राज कर रही होती..! तेरे ही गम में  तेरे पापा वक्त से पहले दुनिया से रुखसत होगए..!” हरीम की अम्मी तंजीया लहजे में हरीम को सुनाती है..! 

जिसे सुन हरीम मुँह में लिये नास्ते के निवाले को वाश बेसिन में उगल देती है ! उसकी आँखे अम्मी की बातें सुन नम होजाती है! 

“अब खाना क्यों उगल रही हो..? अच्छे से बैठ कर नास्ता पुरा खाओ और हाँ मैं आखिर बार कह रही हूँ,,,”,,, वक़्त पर आजना ऑफिस से ! ” अम्मी इस बार बहुत नाराज होते हुए कहती है! 

“क्या हुआ अम्मी यह कैसा शोर मचा रखा है आप ने सुबह सुबह..? एक बार इसे साफ साफ कहदो के वक़्त पर आजाये बस बात ख्तम इसमें इतना बहस क्या करना..? इसकी इतनी मजाल कहा के आप की बात को दरगुज़र करे?” हरीम का बड़ा भाई कासिम अपने कमरे से निकलते हुए कहता है! “सुन लिया तूने भैया ने क्या कहा..? मैं तो कहती हूँ के अब तुझे ऑफिस जाने की भी क्या जरूरत है..? छोड़ दे यह काम धाम और अपना घर बसाने का सोच, वैसे भी लड़कियाँ घर की जीनत होती है उनका यूँ बाहर जाकर काम करना बिलकुल भी नहीं जँचता है..! मोहल्ले में तुझसे छोटी जितनी लड़कियाँ थी सब की शादी हो चुकी है एक तु ही हमारे सर पर बैठी है..!” हरीम की अम्मी एक बार फिर उसे तंजीये लहजे में कहती है!

 तो हरीम अपनी अम्मी को कोई जवाब दिये बेगैर अपने कमरे से अपना बैग और सेलफोन लेकर घर से अपने अपने ऑफिस की तरफ चल देती है!

“देखा तूने इसके तेवर मैं तो कहती हु जितनी जल्दी हो इसका निकाह कर के इसे यहां से हटा..!” हरीम की अम्मी अपने बेटे कासिम से कहती है..!

 “अम्मी बस समझ लो इस बार इसको यहां से हमेशा के लिए अलविदा कर दूंगा आप मुझे नास्ता देदो..! नास्ता करने के बाद मैं रज़िया को उसके मायके जाकर ले आता हूँ !” कासिम नास्ते की टेबल पर बैठते हुए कहा ! “यह अच्छी बात कही तुमने बेटा , बहु आजायेगी तो मेहमानों की खातिर दारी में मेरी मदद हो जायेगी ! मैं नास्ता लाती हूँ !” अम्मी कहती हुई किचन से नास्ता लाकर कासिम के सामने लगा देती है ! 

ऑफिस के रास्ते पर चलते हुए हरीम के जहन में कई बातें शोर मचाने लगते है, फिर वो दिल ही दिल में खुद से बातें करने लगी.!

 “अम्मी को लगता है के मैंने खुद का घर खुद ही उजाड़ा है, खुद की शादी को बिना बचाये तोड़ दिया,,, मैं उन्हें कैसे समझाऊँ के हर लड़की का ख्वाब होता है के वो सजे सवरे और एक खुशाल ज़िन्दगी अपने शौहर के साथ गुज़ारे!

 मुझे मेहँदी लगे हाथ और उनमें लाल काँच की चूड़ियों का बेहद शौक था , मगर आज जब अपनी सुनी पड़ी हाथों को देखती हूँ तो मुझे पल पल अपने बिखरे हुए ख्वाबों का दर्द महसूस होता रहता है ! मैंने भी तो सब की तरह अपने और अतिफ के रिश्ते को बचाने और बहतर बनाने की बहुत कोशिशे की थी मगर,,,,,कभी-कभी कुछ रिश्ते हमारे हाथ में थामे उस रेत की तरह होती है जिसे हम अगर बंद मुट्ठी कर के थामे रखने की कोशिश करते है तो वो उतना ही फिसल कर हमारे हाथ से छुटते जाते है ! हमारे अपने कुछ रिश्ते कभी हमारे लाख चाहने पर हमारे अपने नही होते है! अतिफ और मेरा रिश्ता भी कुछ उसी तरह का था..! खैर अब अम्मी चाहती है के मैं दूसरी शादी कर लूँ मगर… मगर मैं अभी भी दोबारा शादी के लिये तैयार नहीं हूँ ! ना जाने क्यों …? मेरा मन शादी के नाम से एक अजीब खौफ्फ़ में मुबतिला हो जाता है ! खैर अब मैं धीरे धीरे इन सब से निकलना चाहती हूँ ! अकेले ही सही सुकून से जीना चाहती हूँ मगर ये समाज…? यह लोग…? हम लड़कियों को कब चैन से जीना देना चाहते है ! अपने ख्यालों में खुद से बातें करते हुए हरीम अपने ऑफिस पहुँच चुकी होती है !

क्रमशः 02

Previous Part : Hareem-01

शमा खान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
error: Content is protected !!