shah umair ki pari

Shah Umair Ki Pari-06


दुसरी दुनियाँ ‘’ ज़ाफ़रान क़बीला : –
” तुम्हारे कपड़े कैसे गंदे हो गए मिटटी में लोट कर आये हो क्या? बच्चों की तरह मिट्टी में खेलना पसन्द है क्या? ”
मरयम उमैर का रास्ता रोकते हुए कहती है !
“जी नहीं मै गिर गया था पैर फिसलने की वजह से और आप ये अच्छी तरह से जानती है फिर क्यों पूछ रही ?” उमैर
चिढ़ते हुए कहता है।
“मुझे क्या पता कि तुम गिरे थे या मिटटी में खेलने के बहाने कूदे थे । मेरे पास और भी काम है तुम्हे देखने के अलावा!
” मरयम नाक सुड़कती हुई कहती है !
“फिर बालकनी में जोर-जोर से हँस क्यों रही थी आप? आप पागल तो नहीं हो, कि बेवजह ही हँसोगे? आपने मुझे पेड़ से
गिरते और अब्बा से डांट खाते देखा और हँसने लगी।” उमैर थोड़े गुस्से से कहता है।
“अच्छा-अच्छा ठीक है, अब चलो बहस मत करो अब्बा बुला रहे हैं। जल्दी करो वरना उनसे भी डांट पड़ सकती है।”
मरयम कहती हुई अपने अब्बा के कमरे में चली जाती है, उमैर भी उसके पीछे-पीछे कमरे में दाखिल होता है और
शहंशाह के पास जाकर ही बगल में खड़ा हो जाता है।
”कहा गायब हो गए थे शाह उमैर? ना खाने के वक़्त तुम यहां मौजूद थे और ना ही किसी और काम के वक़्त? यह
तुम्हारे कपड़ो में मिटटी कैसे लगी, किसी के साथ दंगल बाजी कर रहे थे क्या?” शहंशा उमैर की तरफ देखते हुए कहते
है।
” जी-जी, वो शहंशाह मैं अपने काम कर के थोड़ा बाहर घूमने गया था बाग़ में और वही पेड़ पर बैठ मेरी आंख लग गयी
और जब उठा तो मैं किचड़ में फिसल कर गिर गया था तालाब के पास इसलिए कपड़े गंदे हो गये।” उमैर घबराते हुए
जवाब देता है तो मरयम अपने अब्बा के पीछे मुँह छुपा कर हँसने लगती है।
” जब देखो दांत दिखा कर हँसती है दिल तो करता है इस शहज़ादी मरयम के दाँत तोड़ के इसके हाथ में दे दू, मगर
अफ़सोस के यह शहंशाह की बेटी है इसलिए कुछ नहीं कर सकता मैं।” उमैर फिर एक बार अपने ख्यालों में बोलता है !
“बेटी मरयम। जाकर देखो अगर तुम्हारे भाई के कपड़े, जो वो ना पहनता हो तो लाकर इसे दे दो। उमैर तुम जाकर
नहा लो फिर मेरे पास आना।” शहंशाह दोनों को हुक्म देते है तो दोनों बारी-बारी कर के कमरे से बाहर निकल जाते है !
“तुम इधर ही रुको हर जगह मेरे पीछे आना-जाना अच्छी बात नहीं। लोग गलत समझेंगे, मैं लेकर आती हूँ तुम्हारे
लिए कपड़े।” मरयम उमैर को छेड़ते हुए कहती है और खुद एक कमरे की अलमारी से उमैर के लिए कपड़े निकाल कर
लाती है।

“मैं और इस पागल जिन ज़ादी मरयम के पिछे पडूंगा हुह। शकल देखी है अपनी? नक्चढ़ी कही की। वो तो शहंशाह
फरहान अब्बास की बेटी है, इसलिए हुकुम मनना पड़ रहा है, वरना हाथ पैर तोड़ देता इसके और उसमें भी सबसे पहले
इसके दांत जो बिन बात ही दिखाती रहती है। हुह! ” मरयम के जाने के बाद उमैर खुद में बड़बड़ाते हुए कहता है !
”यह लो कपड़े और वो सीढ़ीयों से उतर कर दाएं तरफ गुसल खाना है वहा जाकर कपड़े बदल लो ! ” मरयम उमैर को
कपड़े थमाते हुए कहती है !
“हाँ! मुझे पता है कि गुसल खाना कंहा है।” उमैर कपड़े को खोल कर देखता है जो टखनों तक लम्बा , लम्बे आस्तीन
,लबादा जैसा (भारी और लंबा पहनावा, चोगा ) कॉटन का बना हुआ !
” ये कैसे कपड़े है? मैं नहीं पहनता यह सब। मैं बस सलवार कमीज पहनता हूँ।” उमैर मरयम को वापस कपड़े थमाते
हुए कहता है !
“पागल लड़के। ये जुब्बह है शाही लिबास जिन जादो का। कभी देखा नही क्या? पहन लो तुम पर अच्छा लगेगा और
जाओ अब्बा के पास।” मरयम उमैर को कपड़े वापिस थमाते हुए चल देती है।
” मैं यहा अब एक पल नहीं रुकूंगा थोड़ी देर शहशांह की कुछ खिदमत कर दूँ, फिर कोई उपाय लगा कर रात को यहां से
निकलता हूँ। कुछ दिन में ये हाल कर दिया पता नहीं ये शहज़ादी आगे क्या हाल करेगी मेरा? ” उमैर अपने कपड़े
बदलते हुए खुद से ही कहता है और वापस शहंशाह की खिदमत में हाज़िर होता है !
“माशाअल्लाह! शाह उमैर तुम तो जुब्बाह में बिलकुल शहज़ादे लग रहे हो। ” शहंशाह फरहान अब्बास ने कहा !
“जी हुज़ूर शुक्रिया।” कहते हुए उमैर शहंशाह के बदन को दबाने लगता है !
“सुनो उमैर, कल से तुम मरयम की रखवाली करोगे। हमने उसे कभी महल के बाहर नहीं भेजा। मैं किसी पर भी
भरोसा नहीं करता। कर भी कैसे लूँ? मगर तुम मुझे पसंद आये। तुम पर भरोसा सा महसूस कर पा रहा हूँ। जिम्मेदारी
है तुम्हारी मरयम को कभी-कभी बागों वगैरह की सैर करवा देना। वो कुछ कहती नहीं मगर मैं उसकी तमाम ख्वाहिशें
समझता हूँ।वैसे भी मेरी खिदमत करने वाले बहुत से लोग है और अब तबीयत थोड़ी-थोड़ी ठीक भी है मेरी ।” शहंशाह
फरहान अब्बास उमैर से कहते है !
बदन के दबने से शहंशाह को हल्का महसूस हुआ और वो नींद के आगोश में चले गए। जब शहंशाह गहरी नींद में सो
गए तब उमैर महल से बाहर निकल आता है। चारो तरफ ध्यान से देखता है और चुप चाप टहलते हुए अपने घर की
तरफ बढ़ जाता है !
“ये किचन से बरतन की आवाज़ कैसी आरही है ? जाकर देखूं तो जरा के आखिर कौन है? नफिशा जरा मेरे साथ चलना
बहन। ” अमाइरा बत्ती रौशन कर के नफिशा को उठाती है !

“आssssपीsss, कोई बिल्ली होगी जो खाना ढूंढ रही होगी किचन में। बिल्ली खा कर खुद चली जाएगी सो जाए न और
मुझे भी सोने दे कितने अच्छे ख्वाब आ रहे थे शहज़ादों वाले। आप ने उठा दिया मिलने भी नहीं दिया !” नफिशा आँखे
बंद किये हुए ही कहती है।
“ठीक है मत उठो मैं खुद जाकर देखती हूँ। तुम्हे तो बस अपने ख्वाबों से ही मतलब है।” अमाइरा बेड से उतर कर
किचन की तरफ जाती है !

परी के शहर धनबाद में :-
“अरे परी बेटा! तुम आ गयी जरा अपने पापा को भी आवाज़ दे देना रफ़ीक़ चाचा के यहां IPL देखने गए थे और अभी
तक नहीं आये ! ” परी के घर में पहुँचते ही नादिया जी कहती है !
“ठीक है मम्मी। अभी साथ लेकर आती हूँ। ” परी अपने आंसुओ को अपनी मम्मी से छुपा कर पोछते हुए कहती है और
अपना ऑफिस बैग हॉल की चेयर पर रख कर रफ़ीक़ चाचा के घर निकल जाती है ! रफ़ीक़ चाचा के घर पहुँच कर परी
बेल बजाती है !
” अरे! परी तुम, वो भी हमारे घर? आज चाँद ने इतनी महरबानी कैसे कर दी ? ” रफ़ीक़ चाचा का बेटा आसिफ दरवाज़ा
खोल कर परी को सामने देखते हुए कहता है !
” पहली बात तो ये कि मैं कोई चाँद नहीं हूँ। दूसरी बात मेरे पापा है क्या तुम्हारे घर में ? उनको भेज दो मम्मी बुला रही
है ! ” परी आसिफ को चिढ़ कर जवाब देती है !
“अरे बाबा! चिढ़ो मत तुम खुद ही अंदर आकर बुला लो और सुनो, चाँद को चाँद ना कहु तो तुम्ही बताओ क्या कहु ?”
आसिफ दरवाज़े से साइड होते हुए कहता है !
“हम्म, ठीक है। मैं ही देखती हूँ और परी नाम है मेरा तुम परी कह कर बुला सकते हो , ये चांद वांद नही! ” परी आसिफ
से कहते हुए घर के अंदर चली जाती है।
“तब तो और भी अच्छी बात है परी के आगे चाँद की भी क्या औक़ात ? तुम तो सच में परियो की तरह ही खूबसूरत हो,
मेरी चांद।” आसिफ आशिकाना अंदाज़ में कहता है !
“आसिफ, देखो मुझे इस तरह की बातें बिलकुल भी पसंद नहीं है। खुदा का वास्ता है तुम्हें, दुबारा ऐसी बातें मत करना
मुझसे। ” परी आसिफ की तरफ गुस्से से मुड़ कर कहती है।
“माफ़ करना परी, मैं बस ऐसे ही मज़ाक कर रहा। ” आसिफ परी के चेहरे की परेशानी देख कहता है !

“कोई बात नहीं अब मैं पापा को जरा देख लूँ कि वो क्या कर रहे?” परी आसिफ से इजाजत लेकर हॉल रूम की तरफ
जाती है जहा उसके पापा और रफ़ीक़ चाचा मगन होकर मैच देख रहे होते है !
“पापा आप यहां आई पी एल में लगे हैं।वंहा मम्मी आपको बुला रही है। चलिए बहुत देख लिया मैच। ” परी कहती है !
“परी बेटा IPL बहुत बढ़िया चल रहा है बेटा।आओ न तुम भी देखो। बस कुछ देर की बात है खत्म होने को ही है।आखिरी
और देख लूँ बेटा, फिर चलते है तब तक तुम मेरे पास यही बैठो आओ! ” परी के पापा मैच देखने में मगन होकर कहते
है !
”अंकल आप लोग मैच देखिए तब तक मैं और परी बातें करते है ! ” आसिफ आकर कहता है !
“मगर मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी। मैं जा रही हूँ। ” परी कहते हुए जाने लगती है तो आसिफ उसका हाथ पकड़ के
उसे रोकता है और कहता है-
” प्लीज परी हम दोस्त है तुम अपने दोस्त को मना नहीं कर सकती चलो बैठो मैं तुम्हे चाय बना कर पिलाता हूँ, अपने
हाथों की ! ”
“ठीक है। मगर जल्दी करना मैं काफी थक गई हूँ। बहुत काम था ऑफिस में ! ” परी आसिफ के साथ उसके किचन में
जाते हुए कहती है !
“वैसे आज तुम बुझी-बुझी लग रही हो बहुत?थकावट साफ दिख रही चेहरे पर। देखना मेरी हाथ की चाय पीते ही तरो
ताज़ा हो जाओगी।” आसिफ गैस पे चाय चढ़ाते हुए कहता है ! परी उसकी बातों पे कोई खास रिएक्शन नहीं देती है !
उसका दिल आज बहुत उदास था मगर वो अपनी तकलीफे दिखाए भी तो किसे ?
“तुम अपने पापा के लिए टीवी क्यों नहीं ले देती हो? उनका मन भी लगा रहेगा!” आसिफ परी को चाय थमाते हुए
कहता है और फिर हॉल में परी के पापा और अपने पापा को चाय देकर परी को छत पर चलने का इशारा करता है और
दोनों चाय हाथों में लिए छत पर रखी चेयर पर बैठ जाते है !
परी ख़ामोशी से अपनी चाय पीती है तो आसिफ उससे कहता है
” क्या हुआ कुछ बोलो भी या बस ऐसे ही चुप रहने का ख्याल है ? चांद कह देने पर नाराज़ हो?”
“आसिफ मैं अभी तुम्हारे घर का किराया ही नहीं दे पायी हूँ। पापा के लिए टीवी कहा से आएगी? मेरी सैलरी जितनी भी
है पर इतनी भी अच्छी नहीं कि मैं कुछ नया लाकर रखूं घर पर। दूध से लेकर घर का राशन , पापा मम्मी की दवाइयाँ,
सब उधार लाती हूँ और सारी सैलरी इन्ही सब में कब खत्म हो जाती है, अल्लाह ही जानता है। घर का राशन भी अब
की बार खत्म होने को है, और अभी सैलेरी का कोई ठिकाना नही। पता नहीं, मैं सब कुछ। इतना कुछ, कैसे मैनेज करू?
अपने हर शौक़ को तो कब का खत्म कर दिया है मैंने। बस हर वक़्त मम्मी पापा की फिक्र लगी रहती है। अब बस कोई
अच्छी सैलरी वाला जॉब मिल जाये। ” कहते हुए परी की आँखे आंसुओ से भर जाती है !

“आमीन परी। पापा को मैंने कई बार समझाया है कि वो किराये के लिए तुम लोगों को तंग ना करे। मगर वो सुनते ही
नही मेरी और तुम तो जानती हो मेरा घर भी मेरी सैलरी और घर का जो किराया आता है उन्ही से चलता है। पापा
अम्मी के जाने के बाद से थोड़े चीड़-चिड़े हो गये है। परी तुम प्लीज परेशान मत हो अगर मुझसे कोई मदद चाहिए तो
बेझिझक बोलना। ये दोस्त तुम्हारा हमेशा साथ देगा।” आसिफ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए परी की तरफ प्यार से
देखते हुए कहता है।
“नहीं मुझे किसी से कोई मदद नहीं चाहिए। अब मैं चलती हूँ और चाय के लिए थैंक यू। चाय बहुत अच्छी थी आसिफ।
शुक्रिया। ” कहते हुए परी सीढ़ियों से नीचे उतर आती है और अपने पापा का व्हील चेयर पकड़ के घूमती हुई दरवाज़े की
तरफ ले जाती हुई कहती है
”बस पापा, आपका ये मैच तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। बहुत देख लिया आपने, अब घर चलो। ”
आसिफ ख़ामोशी से परी को मोहब्बत से जाते हुए देखता रहता है और मन में कहता है। “बस एक बार तुम मेरा प्यार
कुबूल लो, मेरे दिल की बेकरारी समझ लो, बस फिर मैं भी तुम्हारा और ये घर भी तुम्हारा। बहुत जल्द मैं तुमसे अपनी
मोहब्बत का इज़हार करूँगा परी। मेरी चांद बहुत जल्द ही।’’


क्रमशः- Shah Umair Ki Pari-07

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शमा खान

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