SIYAHI KI SADA

SIYAHI KI SADA

SIYAHI KI SADA

सर्दियों की स्याह रात थी। हवाएं मानो किसी अनसुने राग को गुनगुना रही थीं। पेड़ों के सूखे पत्ते ज़मीन पर बिखरे हुए किसी पुरानी याद की तरह सिसक रहे थे। खिड़की के शीशों पर जमी ओस की बूंदें बाहर पसरे अंधकार को और भी गहरा बना रही थीं। कमरे के अंदर, एक हल्का सा दिया जल रहा था, जिसकी मद्धम रोशनी लकड़ी की पुरानी मेज़ पर रखी डायरी और क़लम पर पड़ रही थी। ये दोनों खामोश साथी महीनों से किसी इब्तिदा के इंतजार में थे।

साथ ही मेज़ के करीब बैठी थीं शमा ख़ान। वह नामी लेखिका थीं, जिनके अफसाने कभी लोगों के दिलों पर नक्श बनाते थे। लेकिन अब वह वक़्त के थपेड़ों और अपने अंदर की वीरानी से हार चुकी थीं। उनकी उंगलियां क़लम को थामने से हिचकिचा रही थीं। उनके दिल की उदासी डायरी के खाली पन्नों में झलक रही थी।

उन्होंने लंबी सांस लेते हुए बुदबुदाया,

“किसके लिए लिखूं? कौन पढ़ेगा मेरी कहानियां? शायद मेरे अल्फ़ाज़ अब किसी के लिए मायने नहीं रखते। शायद लोगों ने अब कहानियों को पढ़ना छोड़ दिया है !”

कहते हुए उन्होंने क़लम को नज़ाकत से मेज़ पर रख दिया और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गईं। बाहर ठंडी हवाओं का आलम ऐसा था कि जैसे वह भी किसी पुराने दर्द का मातम मना रही हों। दूर एक गाड़ी की धुंधली रोशनी अंधेरे को चीरती हुई आई, मगर जल्दी ही वह फिर उस अंधकार में गुम हो गई। ठीक वैसे ही जैसे शमा का दिल बुझा बुझा रहने लगा था!

बाहर का कोहरा जैसे उसके दिल के बोझ को बयाँ कर रहा था। तभी उसकी निगाह मेज़ पर रखी एक पुरानी किताब पर पड़ी। यह उसकी लिखी पहली किताब थी उसे देख शमा की आँखों में बेचैनी अपनी जगह बना लेती है ।  शमा ने खिड़की से झांकते हुए खुद से कहा,

“क्या सचमुच मेरा वजूद मिट रहा है? क्या मेरी कहानियां अब लोगों के दिलों तक नहीं पहुंच पातीं?”

मगर जैसे ही वह मुड़ीं, उनके कदम ठिठक गए। मेज़ पर पड़ी क़लम अजीब सी रौशनी में डूबी हुई थी। ऐसा लगा जैसे वह उनसे कुछ कहना चाह रही हो। अचानक क़लम से धीमी, मगर साफ आवाज़ आई,

“क्या इतनी जल्दी हार मानोगी, शमा?  तुमने हमेशा वो लिखा जो असल ज़िन्दगी का हिस्सा रही ! तुम्हारी कहानियां उन दिलों का सहारा बनीं, जो टूट चुके थे।  क्या अब तुम उन्हें अपने अल्फ़ाज़ से महरूम कर दोगी?”

शमा हकबकाकर क़लम को देखने लगीं। वह आवाज़ उनके दिल की गहराइयों तक उतर गई। उन्होंने कांपते हुए कहा,

“मगर मेरे पास अब लिखने को कुछ नहीं बचा। मैं अंदर से अब बिलकुल खाली हो चुकी हु ! ऐसे जैसे मेरी रूह से अल्फ़ाज़ छिन गए हों।”

क़लम ने मुस्कुराहट भरे लहज़े में कहा,

“तुम्हारे अल्फ़ाज़ खत्म नहीं हुए, शमा। वो तो सिर्फ़ सो गए हैं। उन्हें फिर से जगाओ। तुम्हारी रूह में अभी भी अल्फ़ाज़ों का नूर बाकी है। बस उसे कागज़ पर बिखेरने की हिम्मत जुटानी है।”

शमा की आँखें भर आईं। उन्होंने कांपते हाथों से क़लम उठाई और डायरी का वह पन्ना खोला, जो अधूरा पड़ा था। पहले उनके हाथ रुक-रुककर चलते रहे, मगर जैसे ही क़लम कागज़ पर चलने लगी, जज़्बातों की स्याही बह निकली। हर सतर, हर अल्फ़ाज़ उनके दिल की मायूसी को पिघला रहा था। और कलम ने अपनी रफ़्तार आखिर के पकड़ ली होती है !

…और फिर वह दिन भी आया जब शमा की किताब “स्याही की सदा” ने बाजारों में धूम मचा दी। हर तरफ इसी किताब के चर्चे थे । लेकिन किताब की सफलता से ज्यादा अहम यह था कि शमा के अल्फ़ाज़ फिर से जी उठे थे। उनके अंदर जो अल्फ़ाज़ों का समन्दर था वो वापस से किताब के पन्नों पे लहरों की मानिंद अपना वजूद बयां कर रहे होते है!

लोग उनकी कहानियों में खुद को तलाशने लगे। हर पन्ना जैसे उनकी ज़िंदगी की गवाही देता था। किसी ने इसे अपनी टूटी हुई उम्मीदों का मरहम कहा, तो किसी ने इसे अपनी खोई हुई मुस्कान का आईना। और किसी ने उम्मीद कह के नवाज़ा ! शमा के पास बेशुमार खत आए, जिनमें लोग अपनी कहानियां बताते और लिखते,

“किसे ने लिखा के आप की लिखी कहानिया ज़िन्दगी को एक नयी राह देते है तो किसी ने लिखा!

“आपकी किताब ने मुझे बचा लिया। मैं हार मानने वाला था, लेकिन आपके अल्फ़ाज़ ने मुझे रुककर सोचने पर मजबूर कर दिया। बेशक ये ज़िन्दगी एक बड़ी नैमत है हमें इसे अच्छे से और अल्लाह के अहकाम के मुताबिक गुज़ारनी चहिये असल कामयाबी आख़िरत की है ना की दुनिया की !”

सभी का खत पढ़ कर शमा के दिल में एक नई उमंग जाग उठी। वह समझ चुकी थीं कि उनके अल्फ़ाज़ सिर्फ़ उनकी नहीं, बल्कि उन तमाम लोगों की अमानत हैं, जो अपनी आवाज़ को खो चुके हैं।

एक शाम, जब वह अपने कमरे में बैठी अपनी अगली किताब के लिए लिख रही थीं, तो उन्होंने ठिठककर अपनी क़लम को देखा  तो वो कलम उन्हें मुस्कुराती हुई मालूम हो रही थी

शाम  मुस्कुरा उठीं और खुद से कहा,

“शुक्रिया, मेरे साथी। तुमने मुझे उस वक्त सहारा दिया जब मुझे लगा कि सब खत्म हो गया है। तुमने मुझे याद दिलाया कि हमारी कहानियां सिर्फ़ शब्दों का सिलसिला नहीं होतीं। वे उन जज़्बात का पुल हैं, जो दिलों को जोड़ते हैं।”

अचानक, खिड़की से बाहर शमा की नज़र पड़ती है । आसमान में गहरे स्याह बादल छाए हुए थे। लेकिन उन बादलों के बीच एक चमकदार तारा टिमटिमा रहा था। शमा को लगा जैसे वह तारा उन्हें मुस्कुराते हुए देख रहा हो। वह खिड़की के पास गईं और हल्के स्वर में बोलीं,

“शायद यही ज़िंदगी का असली मतलब है—घने अंधेरों में भी अपनी रौशनी को बचाए रखना। अपने आखिरी उम्मीद के तारे को अपने दिन में रोशन रखना “

कुछ ही समय में, शमा की अगली किताब भी छप गई। इसका नाम था, “उम्मीद के नूर की परछाई”। यह किताब न सिर्फ़ उनके लिखने के नए सफर की गवाही थी, बल्कि उस हर इंसान का पैग़ाम थी, जिसने कभी खुद को हारा हुआ महसूस किया हो।

शमा अब पहले से कहीं ज्यादा मशहूर हो चुकी थीं। उनकी किताबें हर जगह पढ़ी जा रही थीं। लेकिन उनके लिए असली खुशी वह थी, जब लोग उनसे मिलकर कहते,

“आपकी कहानियां सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए होती हैं आप के लफ़्ज़ों में जान होती है ।”

शमा अब जान चुकी थीं कि उनकी क़लम सिर्फ़ उनकी नहीं है। वह उन सबकी आवाज़ है, जिनके जज़्बात खामोश हो गए थे। उनकी हर नई किताब न सिर्फ़ एक कहानी, बल्कि रोशनी का पैग़ाम बनकर उभरती।

एक रात, जब वह अपनी डायरी के आखिरी पन्ने पर लिख रही थीं, तो उन्होंने लिखा:

“”ज़िंदगी में हार और मायूसी का आना तय है। यह तो उस बारिश की तरह है, जो मिट्टी को गीला जरूर करती है, लेकिन उसी गीली मिट्टी से खुशबू भी आती है। हार और मायूसी का होना लाज़िमी है, मगर सवाल यह है कि क्या हम इन मुश्किल लम्हों को अपनी कहानी का आखिरी पड़ाव बना देंगे, या इन्हीं लम्हों से एक नई इब्तिदा की राह निकालेंगे।

हर हार अपने साथ सबक लाती है, और हर मायूसी में एक छुपा हुआ पैग़ाम होता है। मैंने महसूस किया है कि गिरना गलत नहीं है, मगर गिरकर वहीँ पड़े रहना खुद के साथ नाइंसाफी है। जब हम खुद को संभालते हैं, तो एक नई ताकत और नए जज़्बे के साथ उठते हैं। यही हमारी असली जीत होती है।

मेरी कलम ने मुझे यह समझाया है कि जब तक दिल में जज़्बात ज़िंदा हैं, तब तक कहानी खत्म नहीं हो सकती। हर खत्म होता लफ्ज़ अपने भीतर एक नई शुरुआत को छुपाए रखता है। हर दर्द, हर तकलीफ, और हर आँसू हमें एक नया मोड़ देते हैं। यह मोड़ हमें सिखाते हैं कि कहानी के अंत का फैसला हमारे हाथों में है।”

उन्होंने रुककर अपनी कलम की ओर देखा। वह कलम उनके लिए सिर्फ एक लिखने का साधन नहीं, बल्कि उनकी सबसे बड़ी साथी थी। उन्होंने आगे लिखा:
“कहानी लिखने का मतलब सिर्फ अल्फाज़ बुनना नहीं है। यह अपने दिल की आवाज़ सुनना और उसे कागज पर उतारना है। चाहे जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें आए, जब तक हमारी रगों में खून दौड़ता है और दिल धड़कता है, तब तक हमारी कहानी अधूरी है। और अधूरी कहानी में हमेशा एक नया मोड़ होता है।

मैंने सीखा है कि मेरी हर हार, मेरी हर कमजोरी, और मेरे हर ग़म ने मुझे मजबूत बनाया है। मेरी हर गिरावट ने मुझे संभलने का एक और मौका दिया है। और यही मौका मेरी कहानी की सबसे खूबसूरत शुरुआत है।”

डायरी के आखिरी पन्ने पर यह लिखने के बाद, वह मुस्कुराईं। उनके चेहरे पर एक सुकून और आत्मविश्वास की झलक थी। उन्हें पता था कि उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि यह तो उनकी ज़िंदगी का सबसे खूबसूरत बाब (chapter ) शुरू होने का सबब  होता है

उस दिन से, शमा ने यह ठान लिया कि वह अपनी कहानियों के ज़रिए हर उस दिल में उम्मीद का नूर जलाएंगी, जो मायूसी के अंधेरे में डूबा है।

उनकी क़लम अब भी चल रही है, और उनके अल्फ़ाज़ अब भी उन दिलों तक पहुंच रहे हैं, जो रौशनी की तलाश में हैं।

अल्फाज खत्म हो सकते हैं, लेकिन कहानियां नहीं।

कहानी खत्म नहीं होती, वह सिर्फ़ नई शुरुआत के इंतज़ार में होती है!

समाप्त!

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शमा खान

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