Tamanna_Ae_Khaam- 09


बालकनी से सटे कमरे से अचानक एक खूबसूरत नक्श वा रंगत ,नीली बोलती आँखे , लम्बा क़द_ओ_कामत वाला एक नव जवान लड़का सलाम करते हुए अलफ़ाज़ के सामने आकर खड़ा होजाता है  और कहता है ! ” गुस्ताखी माफ करें .., बंदे को नूर अल फरीद कहते है और आप को जिस तीसरे की मौजूदगी बार बार महसूस हो रही थी वो मैं ही हूं…!
अलफ़ाज़ हैरत से उस नौजवान को तो कभी हायात  की तरफ सवालिया नज़रों से  देख रही होती है..!
तभी हायात गला साफ़ करते हुए उस नौजवान की तरफ इशारा करते हुए कहती है ! ” अलफ़ाज़ ये  मेरे भाई  है आज ही गैंगटॉक आये है यहाँ बिजनेस के कुछ  काम से और मैं यहाँ हूँ तो  मुझसे मिलने भी इधर आगये ! मैं बस तुम्हे बताने ही वाली थी फिर सोचा के पहले तुमसे तुम्हारे माज़ी का हाल जान लूँ क्या मालूम ? फिर बाद में तुम ना बताओ इसलिए नहीं बताया क्यों ? सही कहा ना नूर भाई  … ! “
“हाँ  मगर …. अल्लाह के वास्ते हायात अब इनसे और झूठ मत कहो कुछ तो खुदा का खौफ करो.., वैसे मुझे लगता है के अब हमें अलफ़ाज़ को सच बता देना चहिये के हम असल में कौन है और अभी उसके साथ क्यों है..? उसे सच जानने का हक़ भी है  मगर उससे पहले मैं चाहता हूँ के अलफ़ाज़ आप इस गरीब का सलाम क़ुबूल करे मुझे ख़ुशी होगी…!” नूर अदब से झुक कर सलाम करता हुआ अलफ़ाज़ से कहता है !
“जी वालेकुम अस्सलाम …,वैसे  कैसा सच छुपा रहे हो आप दोनों मुझसे ?, जरा मेहरबानी कर के बतायेंगे ….!” अलफ़ाज़ बड़े ही संजीदगी के साथ कहती है !
“जी अल्फाज जरूर बताएंगे..! अल्फाज असल में सच  ये है के मैं इस शहर में किसी काम से नहीं आया बल्कि मैं सालों से इस शहर में और इस घर में रह रहा हु इसी सामने वाले कमरे में और मैं…..!” नूर कहते  हुए रुक जाता है..!
“और क्या ? पूरी बात बताये !” अलफ़ाज़ हैरान होते हुए पूछती है..!
“अलफ़ाज़ मुझे डर है के कही तुम हमारी हकीकत जानने के बाद खौफ का शिकार ना हो जाओ या शायद हमें गलत न समझो वैसे तुम्हारा कुत्ता राही कहाँ है…?” नूर  कहता  है..!
“राही बैठा होगा घर के बाहर उसको छोड़ो और  तुम ये बताओ आखिर ऐसा कौन सा  सच है..?  जिसे जानने के बाद मैं खौफ का शिकार हो जाऊँगी , और ये बातों को घुमाना बंद करो साफ़ साफ़ बताओ के आखिर बात क्या है ? ” अलफ़ाज़ परेशान होते हुए कहती है..!


“अल्फाज कोई भी ऐसी बात नहीं है.., नूर भाई खमखा का तुम्हे परेशान कर रहे है..! छोड़ो ये सब चलो आज कुछ लजीज खाना मिल कर बनाते है..!” हायात नूर की तरफ उसे खामोश रहने का और इस बात को यहीं खत्म करने का इशारा करते हुए कहती है ..!
“हायात ये तुम मुझे बार बार खामोश रहने का इशारा क्यों  कर रही हो..?  सही तो कह रही है ये हम कब तक इससे सच  छुपायेंगे  आखिर कभी तो बताना है ना तो फिर आज क्यों नहीं..? होसकता  है सच जान लेने के बाद हमारा काम और साथ रहना आसान हो जाय..!” नूर कहता है.!

“ठीक है भाई कल बताना देना ,अभी के लिए रहने दो भाई, चल कर खाना बनाते है ..!” हायात कहती है..!

 “हायात जो भी बात है वो मैं आज और अभी बताऊंगा, तुम खाना बाद में बना लेना पहले आओ बैठो हमें साथ में मिल कर अलफ़ाज़ को सब सच बताना है..!” नूर हायात और अलफ़ाज़ को सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा करता है और खुद भी कमरे से एक कुर्सी लाकर सामने बैठ जाता है !

ना चाहते हुए भी हायात नूर की बात मान कर कुर्सी पर बैठ जाती है ..! 
साफ़ सियाह आसमान से झाँकता चाँद गैंगटॉक की वादियों में अपनी ठंडी रौशनी फैलाये चमक रहा होता है ! सर्द हवा के थपेड़े अलफ़ाज़ के रुखसार को बारी बारी से छू कर गुज़र रहे होते है !
एक तरफ माज़ी की तल्ख़ियों भरी यादें और अब ये भाई बहन अलफ़ाज़ को मज़ीद सोचो में डाल रहे होते है..!
हायात अल्फ़ाज़ का हाथ अपने हाथों  में थामे अपनी ख़ामोशी तोड़ते हुए कहती  है..!” देखो अलफ़ाज़ इन कुछ दिनों में ही सही मगर मुझे लगता है हम अच्छे दोस्त बन गए है मुझे यक़ीन है  के तुम मुझे गलत नहीं समझोगी और कोई तुमसे दोस्ती कैसे ना करे तुम  हो ही इतनी प्यारी , मासूम ,साफ़ दिल , मदद गुज़ार और ना जाने कितनी ही खूबियाँ  तुम ने अपने अंदर समेट रखा है….. ,
मरने से पहले अब्बा ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया  था..! उन्होंने हम दोनों भाई बहन से कहा था के जब मैं ना रहु तब तुम दोनों बारी  बारी अलफ़ाज़ की हिफाज़त के लिए उसके मुवक्किल ( जिस पर भरोसा किया जा सके) बन कर उसके पास जाओगे…. !  

नूर भाई तो काफी दिनों से तुम्हारे साथ है तुम्हारी हिफाज़त के लिए..! फिर उन्होंने मुझे भी यहाँ बुला लिया , जिस रोज मैं इस खूबसूरत वादी गैंगटॉक में आयी तब  मैंने  पहली दफा उन पहाड़ो पर तुम्हे खामोश डूबते सूरज को निहारते देखा था.., उस वक़्त तुम्हारी इन दो आँखों में मैंने सूरज की धुंधली रौशनी के साथ गहरा होता माज़ी का दर्द देखा और  तब से ही मैं ने ठान  लिया था के मैं तुमसे दोस्ती करुँगी और तुम्हारे अंदर जल रहे दुखों की आग की तपिश को कम करुँगी या शायद हमेशा हमेशा के लिए ख़तम ही करदूंगी !


क्यों के मुझे मालूम है तुम यहॉँ अकेले अपने माज़ी की दर्द भरी यादों के साथ जी रही हो ! अलफ़ाज़ हम कही भी भाग कर चले जाये माज़ी की कड़वाहट भरी यादें कभी भी हमारे अंदर से खतम नहीं होती  वो  हमारा पिछा करते रहती है चाहे हम जहाँ कही भी रहे ! हमारा माज़ी हमारे अंदर कही कोने में पड़ा अंदर ही अंदर चुभता रहता है !
“देखो हायात मैं शायद इतनी भी अच्छी नहीं हूँ जितना तुम  दोनों समझ रहे हो और जो भी कहना है जल्दी कहो क्योंकि ? अब मैं तुम दोनों भाई बहन की बकवास से थक गयी हूँ और अब मेरा दिल तुम दोनों की बातों से बेचैन हो रहा है !” अलफ़ाज़ नाराज़ और परेशान होते हुए कहती है !
“अलफ़ाज़ तुम परेशान ना हो मैं बताना हूँ असल बात ये है के हम इंसान नहीं है हम क़ौम_ऐ _जिननात से  है, और हम नेक जीन है जो तुम्हरी ही तरह नमाज़ पढ़ते और रोज़े रखते है..! 
जब तुम इस शहर में आयी थी और मेरे अब्बा का ये घर किराये पर रहने के लिए था , तब तुम्हारे  पास कुछ भी नहीं था सिर्फ गुज़र बसर के लिए चन्द कपड़े  बैग में और कुछ रुपय थे ! उस वक़्त तुमने ने एक जरुरत मंद को अपने माँ के दिये  हुए कान के सोने के बुँदे खोल कर इसलिए दे दिये क्यों  के उस जरुरत मंद इंसान की बीवी काफी बीमार थी और उसे ज्यादा रुपयों की जरुरत थी इलाज के लिए..!  अलफ़ाज़ तुम चाहती तो अपने पास पड़े थोड़े रुपय दे सकती थी मगर नहीं तुमने उस वक़्त वही किया जो असल में आप को सही लगा और सच बोलो तो मदद करना इसे ही कहते है ! खुद की जरुरत होते हुए भी उसे तर्क कर के दूसरों के बारे में सोचना बस आप की यही अदा मेरा अब्बा फरीद हसन को बहुत पसंद आयी और वो पिछले पाँच साल तक आप के मुवक्किल बन कर रह रहे थे.., कुछ निजी वजहों की वजह से उनका यहाँ से जाना पड़ा था फिर एक बीमारी के वजह से उनका इंतेक़ाल होगया था अब  उनके इस दुनियाँ से गुज़र जाने के बाद अब मैं और हायात  तुम्हारे  मुहाफ़िज़ ( हिफ़ाज़त करनेवाला, रक्षक) हूँ  !” नूर अलफ़ाज़ को समझते हुए कहता है !
सारी बात सुनते ही अलफ़ाज़ के पेसानी पर पसीने पड़ने लगते है.. , वो घबराहट से कांपने लगती है..! उसे यक़ीन नहीं हो रहा था के उसके सामने जो दो लोग है वो कोई और नहीं बल्के जिननात है  तभी हायात उसका हाथ थाम कर उसे भरोसा दिलाने की कोशिश करती है..!
“देखो अलफ़ाज़ तुम हम से डरो नहीं.., भले ही हम इंसान नहीं मगर हम तुम्हे कोई नुकशान नहीं पहुँचाने वाले है नूर भाई ने बताया ना तुम्हें के हम तुम्हारे मुहाफ़िज़ है और हम कोई शैतान जिन्नात नही  बल्के नेक और अल्लाह की इबादत गुजार बंदे है..!” हायात अलफ़ाज़ को समझाते हुए उसे शांत करती है..!
“मुझे कुछ नहीं जानना आगे खुदा के वास्ते तुम दोनों भाई बहन यहाँ से चले जाओ या…या  मैं ही यहाँ से चली जाती हूँ… !”अलफ़ाज़ थोड़ा नाराज़ होते हुए कुर्सी से उठती हुए कहती है..!
“देखो अलफ़ाज़ डरो नहीं बैठो आराम से हमारा यकीन करो हम तुम्हे कोई नुकसान नही पहुंचाएंगे और मेरी एक और बात सुनो निकाह के बाद की रात को जिस परछाई को तुमने अपने क़रीब बैठे देखा था वो एक शैतान जिननात  था जो निकाह के बाद तुम्हारी जिस्म से उठती कुदरती खुश्बू को सूँघता हुआ तुम्हारे पास आया था, वो तुम्हे छूना चाहता था..!  उस रोज से लेकर आजतक वो शैतान जिननात तुम्हारे  पीछे पड़ा है तुम्हे  हासिल करने की चाह अपने दिल में  लिए..! ” नूर कहता है..!
” हाँ अलफ़ाज़ नूर भाई सच कह रहे .., अगर उस रोज तुमने क़ुरआनी दुआओ को पढ़ कर खुद पर दम ना किया होता तो वो शैतान तुम्हें बुरी नियत से छू सकता था या शायद अपने साथ लेकर जा भी सकता था और तुम कुछ भी नहीं कर पाती और ना ही कोई तुम्हारा पता लगा पाता..!” हायात कहती है..!


“कोई तो बात है तुममे जो आज तक वो तुमसे हारता आया है और इंशा अल्लाह ( अगर अल्लाह ने चाहा ) तो कभी भी कामयाब नहीं हो पायेगा अपने नापाक मनसूबों में..! अल्फाज तुम्हें याद है कुछ दिन पहले जब आप फोटो निकलवा कर घर की तरफ वापस आरही थी तब उसी जिननात  ने आप पर हमला किया था और अगर मैं उस रोज वक़्त पर ना आता तो शायद उस सर्द झील के पानी में डूब कर आप की मौत हो सकती थी..,और वो शैतान अपनी चाल में कामयाब होजाता..! वो शैतान जीन हर रोज तुम्हारी ताक में लगा रहता है.. , तुमने ने कई बार दो लाल अंगारा आँखे देखी ही है वो उसी शैतान की है !” नूर समझाते हुए कहता है तो अल्फाज को उसपर यकीन होने लगता है मगर फिर भी वो पूरी तरह से उन दोनों पर यकीन नहीं कर पा रही होती है..!

अलफ़ाज़ , नूर और हायात तीनों कुछ वक़्त के लिए खामोश एक दूसरे का मुँह तकते रहते है..! तभी कहि दूर से सन्नाटें को चीरती शियार के रोने की आवाज़ साथ में कुत्तों के भौंकने की आवाज़ माहौल को खौफजदा बना रहे होते है..!

“इनको भी अभी भौंकना था कही अल्फाज डर ना जाए..!” हायात धीमे से कहती है..!
“मेरे ख्याल से अब मुझे चलना चहिये नमाज़ भी पढ़नी है और खाना भी बनाना है..!” अलफ़ाज़ कुर्सी से उठते हुए कहती है..!
“हाँ चलो अलफ़ाज़ मैं भी चलती हूँ और नूर भाई आप इधर क्या करेंगे..? चले साथ में काम में हाथ बटा देना !” हायात भी कुर्सी से उठते हुए कहती है..!
“हां जरूर चलो..!” नूर भी कहता हुआ उनके साथ चल देता है..!
रात को खाने की मेज पर तीनों एक साथ खाना खाने के लिए बैठते है अलफ़ाज़ के ज़हन में एक ही बात चल रही होती है के वो किसी इंसान नहीं बल्कि अल्लाह की बनायी दूसरी मखलूक जिननात के साथ कई दिनों से रह रही है..!
“आराम से खाओ अल्फ़ाज़ तुम्हारी प्लेट से खाना बाहर की तरफ गिर रहे है !” हायात अलफ़ाज़ को घबराते हुए खाना खाते देख कहती है..!
“कही तुम दोनों मिल कर मुझे बेवक़ूफ़ तो नहीं बना रहे  ये कहानियाँ सुना कर ! अगर तुम्हे ये  घर चहिये तो लेलो मगर मुझे इस तरह परेशान मत करो मैं आलरेडी बहुत कुछ झेल चुकी हूँ..!” अलफ़ाज़ खाना खाना छोड़ कर कहती है..!
“अलफ़ाज़ हम दोनों समझ रहे के तुम्हारे लिए ये सच क़ुबूल करना कितना मुश्किल है..! फिर भी यही सच है और यक़ीन मानों हम तुम्हे कोई नुकशान नहीं पहुँचाने वाले है..!” हायात समझाते हुए कहती है..!
“अगर तुम्हें हम पर यक़ीन नहीं तो हम अभी के अभी यहाँ से हमेशा के लिए चले जायेंगे मगर उसके बाद शायद तुम बहुत पछताओ…!” नूर कहता है..!
“फिलहाल अभी कहीं जाने की कोई जरूरत नही..! इस बारे में हम बाद में बात करेंगे पहले मैं राही को खाना देकर आती हूँ फिर बात करते है..!” अलफ़ाज़ कहते हुए राही का खाना लेकर बाहर जाती है मगर राही अपनी जगह पर बैठा हुआ नहीं होता है , वो चारों  तरफ नज़र घुमा कर देखती है मगर उसे कही भी राही नहीं दिखता है..! अलफ़ाज़ परेशान घर की दहलीज़ पर  खामोश  बैठ चाँद को निहारते हुए सोचती है..! ” ये वक़्त ना जाने और कैसे कैसे इम्तेहान लेगा मेरे मैं अकेले जरूर थी मगर लाइफ में सुकून था ना जाने ये लोग कहा से मेरी ज़िन्दगी में आगये ,  नेक जिन्नातों के बारे मैंने अकसर पढ़ा था मगर मालूम नहीं था के कभी मेरा सामना उनसे होगा , नूर वही लड़का है जिसे मैं अक्सर देखती हूँ मेरी जान बचाते  हुए शायद मुझे इनपर थोड़ा यकीन रखना चाहिए..!
 तभी राही उसे अपने बगल में बैठा दिखता है..!


“राही के बच्चे कहा था अभी तू मैं कितना परेशान होगयी थी  चल आजा  खाना खा ले..! ” अलफ़ाज़ कहते हुए राही की तरफ खाना बढ़ाती  है मगर राही खाना खाने के बजाय अलफ़ाज़ के सामने आकर बैठ जाता है  जैसे ही वो पास में पड़े खाने का बरतन उठा कर राही की तरफ बढ़ाती है वहाँ पर राही के बजाये उसके सामने नूर  बैठा होता है और कहता है..! “अभी तो अंदर तुम्हारे साथ बैठ कर खाना खाया है..!
नूर की बात सुन कर अलफ़ाज़ के हाथ से खाने का बरतन अचानक छूट कर गिर जाता है..!
“तो वो तुम थे..? ” अलफ़ाज़ कहती है…!
“हाँ अलफ़ाज़ मैं ही राही बन कर हर वक़्त तुम्हारे साथ था क्यों के बिना हायात के मदद के मैं तुम्हारे सामने आता तो शायद तुम कभी मेरी बात नहीं सुनती..!” नूर कहता है..!
अलफ़ाज़ अपनी निगाहें ज़मीन के सिमत जमाये कुछ वक़्त तक  देखते हुए कुछ सोचती है फिर नज़रे उठा कर नूर की तरफ देखती है और कहती है..!” अब आगे किया..? “

क्रमशः Tamanna_Ae_Khaam- 10

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