Tamanna_Ae_Khaam- 10

तमन्ना_ऐ_खाम _10

नूर और अलफ़ाज़ बातें करते हुए वापस बालकोनी वाले कमरे में जाकर कुर्सी पर  बैठ जाते है  !
“नूर तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया के  आगे किया करना है या किया होगा  ?” अलफ़ाज़ पूछती है !
” आगे किया होगा यह तो मुझे भी मालूम नहीं , मगर मिसबाह अज़ीज़ खान जब तक अल्लाह ने आप को यह खूबसूरत ज़िन्दगी दी है इसे अच्छे से गुज़ारो बाकी हम दोनों भाई बहन तुम्हारे साथ है तुम्हारे ज़िन्दगी के हर मरहले में हाँ और एक बात और तुम्हारा असल नाम मिसबाह काफी खूबसूरत इससे मत भागो तुम आख़िरत में भी इसी नाम से पुकारी जाओगी  !” नूर अलफ़ाज़ का असल नाम लेते हुए उसे कहता है !
“सब जानती और समझती हूँ मगर नूर जब भी किसी की ज़ुबान से अपना नाम मिसबाह सुनती हूँ , इस नाम से जुड़े माज़ी के सारे वाक़यात मेरे ज़हन में शोर मचाने लगते है ! जो मुझे बेहद परेशान कर के रख देती है !” अलफ़ाज़ कहती है !
“जिस रोज अपने अंदर दफन माज़ी को निकाल फेंकोगी उस रोज अलफ़ाज़ तुम्हे अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी हर चीज़ से मोहब्बत हो जायेगी ! और
 नूर भाई  आप को आराम नहीं करना  चले आराम कर ले अब काफी रात हो चुकी है !” हायात पीछे से आते हुए कहती  है !


“ठीक है चलो !” नूर कुरसी से उठते हुए कहता है !
“ठहरो नूर हायात मैं तुम दोनों से एक बात पूछना चाहती हू..!” अल्फ़ाज़ कुछ सोचते हुए कहती है !
“हाँ…. अलफ़ाज़ जरूर जो कुछ भी तुम्हारे ज़हन में हो पूछो हमें ख़ुशी होगी..!” हायात मुस्कुराते हुए कहती है..!
“मुझे अपने जिन्नात होने का यक़ीन दिलाओ ताके मेरे दिल में जो शक तुम्हे लेकर है वो दूर हो जाये…!” अलफ़ाज़ कहती है !
“कही तुम हम लोगों से डर गई तो..?” नूर कहता है..!
“नहीं डरूंगी आप बस  मुझे अपने जीन होने का यक़ीन दिलाये !” अलफ़ाज़ के इतना कहते ही नूर और हायात उसके आँखों के सामने से गायब होजाते है ! अलफ़ाज़ घबरा कर इधर उधर देखने लगती है ! तभी दो  इंसानी मर्द और औरत का हेवला धुवे की शकल में  उसके सामने आकर खड़ा होजाता है ! अलफ़ाज़ उन हेवलों को अचानक अपने सामने देख घबरा कर पीछे हटने लगती है..!
“अलफ़ाज़ घबराओ नहीं ये हम दोनों है !” हायात कहती है मगर अल्फ़ाज़ घबरा कर पीछे की तरफ हटने लगती है !
 तभी उसका पैर फिसलता है और वो नीचे की तरफ गिरने लगती है !
सुबह की रौशनी चेहरे पड़ते ही अल्फाज की आंखे खुलती हैं तो वो खुद को अपने कमरे में बिस्तर पर पाती हैं , उसे फौरन याद आता है के कल रात वो नूर और हायात से  बाते करते हुए कमरे की बालकनी से फिसल कर गिर गई थी ! वो बार बार अपने हाथो से अपने पूरे जिस्म को छू  कर देखती है के उसे  कहाँ  कहाँ  चोट लगी है मगर वो बिलकुल  ठीक होती है..! उसके जिस्म में एक भी खरोच के निशान नहीं होते है..!
” मै बालकनी से गिरी फिर भी मुझे जरा सी  चोट तक नहीं लगी मगर कैसे …?  ” अल्फाज खुद में सोचती हैं..!
” क्यों के हमारा घर काफी छोटा है और छत से जमीन की ऊंचाई ज्यादा नही है इसलिए ,  हाँ यह अलग बात है के तुम घर से ज्यादा  नीचे खाई की तरफ गिरने से बच गई वरना तुम्हारा मिलना और बचना दोनो ना मुमकिन था ! अब उठ जाओ और  बताओ कैसी तबयत है तुम्हारी..! ” हायात नास्ते की ट्रे लिए कमरे में दाखिल होते हुए कहती हैं..!
” मगर मैं तो यह सारी बातें अपने मन में सोच रही थी तुम्हे कैसे मालूम पड़ा..! ” अलफ़ाज़ हैरत से पूछती है..!
हायात  खुद में सोचती है ” लगता है अलफ़ाज़ हमारे जिन होने की बात को भूल चुकी है !”
” ओफो , मिस्बाह तुम खुद से बातें कर रही थी तब मैंने सुना !” हायात कहती है..!”
” अलफ़ाज़ नाम है मेरा !” अलफ़ाज़ थोड़े नाराज़गी वाले अंदाज में कहती है !
“माज़रत चाहती हूँ , अच्छा अलफ़ाज़ मैं यह कह रही थी के मैं घर में बैठे बैठे काफी बोर होजाती हूँ तुम अगर बुरा ना मानों तो मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे शॉप चलु मेरा भी वक़्त गुज़र जायेगा और तुम्हे भी बिना सैलरी का एक स्टाफ मिल जायेगी और मेरा यक़ीन मानो मैं वहाँ तुम्हे बिलकुल भी परेशान नहीं करूंगी.., क्यों क्या कहती हो .? ” हायात अलफ़ाज़ से कहती है..!
” बात पैसों की नहीं है , मगर मैं तो अभी तुम्हे अच्छे से जानती तक नहीं हूँ. .? वो अलग बात है के मैंने तुमसे अपना माज़ी शेयर किया ! ” अलफ़ाज़ थोड़ा हिचकिचाते हुए कहती है..!
” भरोसा एक पल में तो नहीं होता मगर धीरे धीरे एक दूसरे को जानते हुए  एक रोज  होजायेगा ! तो चले !” हायात कहती है !
” हम्म। … ठीक है चलो ! ” अलफ़ाज़ कहती है फिर दोनों स्कूटी से पहाड़ों से नीचे बने मार्केट की तरफ चल देती है जहाँ अलफ़ाज़ की शॉप होती है..!
पूरा दिन काफी मसरूफियत में गुज़र जाता है ! शाम के चार बजे अपने शॉप बंद कर अलफ़ाज़ हायात के साथ अपने पसंदीदा जगह पर जाकर बैठ जाती है..!
” तो यह तुम्हारी पसंदीदा जगह है ! ” हायात कहती है !
“हाँ बहुत पसंद है मुझे ये नज़ारे ,ये शाम की चादर ओढ़े लाल आसमान , खुद को डुबोता हुआ सुर्ख सूरज और अँधेरे में गुम होती ये वादियाँ !” अलफ़ाज़ आहे भरते हुए कहती है और हमेशा की तरह अपने कोट से डायरी  निकाल कर ग़ज़ल लिखना शुरू करदेती है ! 


*..वो चले गए..*
हथेलियों पे रख के गुलाब , वो चले गए ,
फिर ना आई मोहब्बत की रात , वो चले गए !
हम हाथों में गुलाब लिए , हाथ मलते रहे ,
फिर ना आई सुहाग की वो रात , वो चले गए !

कितना बेदर्द है यह ज़माना , सुकून से जीने भी नही देता
बस सुनाये थे उन्हें चंद अल्फाज , ओर वो चले गए !
हथेलियों पे रख के गुलाब , वो चले गए
फिर ना आई मोहब्बत की रात , वो चले गए !
कहते है खुदगर्ज मुझे , लोग ना जाने किन वजहों से
हम तो थे गुल-ऐ-आफताब , जिसे कुचल वो चले गए !
जिनपे लुटायी थी अपनी सारी जवानी हमने ,

वह निकले दाग दार , रुस्वा कर वो चले गए !
फिर ना आई मोहब्बत की रात , वो चले गए !
निकाह के रक़म की सारी अदाएगी हो चुकी थी
फिर भी वापिस चली गयी बारात , और वो चले गए !
लोग समझते नहीं ” मिस्बाह  ” , इश्क़ बार बार नहीं होता
एक बार सजाये थे हमने ख्वाब , वो  चले गए !
फिर कभी ना आयी बहार , वो चले गए !
हथेलियों पे रख के गुलाब , वो चले गए ,
फिर ना आई मोहब्बत की रात , वो चले गए !

 
ग़ज़ल के मुकम्मल होते ही अलफ़ाज़ अपनी डायरी वापस कोट के जेब में रख लेती है..!
” तो तुम्हें ग़ज़लें लिखने का भी शौक है..? ” हायात धीमे से मुस्कुराते हुए कहती है..!
” हाँ और फोटो ग्राफी का भी. .!” अलफ़ाज़ कहते हुए अपना डसलर कैमरा  निकाल कर ग्रोब होते सूरज के साथ साथ हायात की भी फोटो क्लिक करने लगती है..! तभी अचानक मौसम का मिज़ाज़ बदलता है और गैंगटोक की वादियों में बर्फ बारी शुरू हो जाती है ! चारों तरफ सफ़ेद चादर से ढकी  वादियाँ दिखने लगती है ! तभी हायात हँसते हुए बर्फ का गोला उठा कर अलफ़ाज़ के मुँह पर दे मारती है !
“हायात तुम्हारा दिमाग  खराब होगया है किया..? तुम मुझे मार क्यों रही हो…?” अलफ़ाज़ कहती है..!
“दिमाग बिकुल सही है मेरा वैसे  तुम्हें तो बर्फ बारी पसंद है ना फिर इस तरह खामोश  क्यों बैठी  हो..? चलो उठो इस साल की पहली बर्फीली बरसात के मजे लो..!” हायात कहती है..!  
 तब तक राही भी अपनी दुम हिलाता हुआ अलफ़ाज़ और हायात के पास आकर बैठ जाता है..!
” नूर तुम अपनी असल शक्ल में भी आ सकते हो मैं अब सच जानती हूँ..!” अलफ़ाज़ अपने कुत्ते राही  से  मुस्कुराते  हुए कहती है !
“अलफ़ाज़ नूर भाई को फ़िलहाल ऐसे ही रहने दो तुम मुझसे मुखातिब हो जाओ !” हायात कहते हुए दोबारा अलफ़ाज़ को बर्फ के गोले से मारती हुई कहती है..!
“हायात की बच्ची इस बार मैं तुम्हे नहीं छोडूंगी रुको अभी बताती हूँ ! ” अलफ़ाज़ बर्फ का गोला उठाते हुए कहती है ! दोनों एक दूसरे को बर्फ  फ़ेंक फ़ेंक कर मार रहे होते है और राही भी उनके साथ उछल कूद कर रहा होता है ! और यह कई सालों में पहली बार होता है  जब अलफ़ाज़ खिलखिला कर हँस रही होती है  !

कुछ दिन बाद ….!
“अस्सलाम ओ अलैकुम अम्मी कैसी हो आप ! लो अब देख लो मुझे आखिर के मैने आप से बात करने के लिए एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लिया! ” अल्फाज अपने नये मोबाइल से वीडियो कॉल करते हुए कहती हैं!
” वालेकुम अस्सलाम बेटा , मगर तूने यह अपनी क्या हालत बना रखी है ..? बाल क्यों छोटे करा लिए तुमने !” अम्मी दूसरी तरफ से कहती है !
“अच्छे तो लग रहे अम्मी ! वो असल में अम्मी मुझे बाल बनाने नहीं आते इसलिए अपना वक्त बचाने के लिए बाल छोटे करवा लिए ! ओफ्फो अम्मी यह सब छोड़ो पहले मैं आप को अपना घर दिखाती हूं और यहां का मौसम भी , पता है अम्मी यहां पर अभी बर्फबारी हो रही है ! “अल्फाज वीडियो कॉल में अपनी अम्मी को पूरा घर दिखाते हुए कहती है !
“बेटा घर तो बहुत अच्छा है और मौसम भी तेरे पसंद का मगर बेटा अकेले कब तक रहेगी तू , उम्र निकल जाएगी कर ले दूसरी शादी !”अम्मी कहती है !
“अम्मी आप बार बार शादी का नाम क्यों लेती है ..? और मैं अब यहां अकेले नही रहती, यह घर जिनका  था , उनकी बेटी हायात भी अब मेरे साथ रहती है ,रुको अभी आप को उसको दिखाती हूं, देखो वो अपने कमरे में  नमाज पढ़ रही है !” अल्फाज हायात को वीडियो कॉल में दिखाते हुए कहती है !
“मगर मिस्बाह बेटा मुझे तो कोई भी नहीं दिख रहा तुम किसे दिखा रही हो ! बेटा जरा ध्यान से कही कोई जिन भूत ना तुम से आकर चिमट जाए! ” अम्मी कहती है !
“अम्मी कैसी बाते कर रही आप ..? रुको मैं आप को करीब से दिखाती हुं !” अल्फाज कहते हुए मोबाइल हायात के करीब ले जाती है मगर फिर भी उसकी अम्मी को कोई भी नज़र नही आता!
” मिस्बाह मजाक करना बंद कर बेटा , जा नहीं बोलूंगी शादी करने के लिए रह अकेले !” अम्मी नाराज होते हुए कहती है !
“अम्मी….अब दोबारा शादी करने की हिम्मत नही है मुझमें  ,आप कुछ और बात करे , वैसे मैंने आप के लिए तोहफा पार्सल किया था मिला कि नहीं आप को ..?” अल्फाज पूछती है !
” हां मिल गया , मगर बेटा एक बार तू भी वापस आजा, भला इस उम्र में तोहफे लेकर किया करूंगी मैं, मुझे तुझे गले लगा कर एक बार प्यार करना है बस ! ” अम्मी कहती हुए रोने लगती है !
“मैं जल्द आऊंगी आप रोये ना प्लीज !” अल्फाज कहते हुए कॉल काट देती है !
” हो गई बात अम्मी से..?” हायात जा नमाज समेटते हुए पूछती हैं !
” हाँ होगई बात, कुछ भी कर लो उनको सब्र नहीं होता ! बस वापस आने की जिद करने लगती है, और रोती रहती हैं !” अल्फाज आंखों के कोनों को साफ करते हुए कहती है !
“तो चली जाओ कुछ दिनों के लिए ! आखिर मां है वो तुम्हारी , आज वो जिंदा है तो हाल भी पूछ रही कल को कोई तुम्हारी खबर तक लेने वाला नहीं होगा , हमें हमारे अपनो की कद्र वक्त पर कर लेनी चाहिए, वक्त का क्या भरोसा कब कैसा हो जाये..?” हायात समझाते हुए कहती है !
” मैं सोचूँगी इस बारे में , फिलहाल मैं आती हूं स्टूडियो से अपने कैमरे से कुछ फोटो निकलवा कर !” अल्फाज कहते हुए अपना कैमरा लेकर घर से बाहर निकल जाती हैं !  
“मैडम यह लो सारे फोटो निकल गए आप के ,आप के टोटल पांच सौ हुए है ! ” फोटो शॉप वाला लड़का अल्फाज को एनवेलप थमाते हुए कहता है !
अल्फाज बिल पे कर के फोटो के एनवेलप लेकर  पैदल घर की तरफ चल देती है !
मौसम काफी सर्द होता है , सर्द और बर्फीली हवाएं तेज तेज चल रही होती है ! आपने कोट के पॉकेट में हाथ डाले अल्फाज बर्फीली जमीन पर नजर गड़ाए चल रही होती है तभी वो चलते हुए अचानक एक काली  परछाई से जा टकराती है ! लाल अंगारा आंखे , भयानक जला हुआ चेहरा , लंबे नुकीले दांत, गंदे बाल ऐसा वजूद जिससे नहूसत टपकती हो जिसे देख अल्फाज की चिंखे फिजा में बुलंद हो जाती है !
वो खबीस शैतान अल्फाज को अपने दोनो हाथो से कस कर पकड़ लेता है , उस शैतान के वजूद से गंदी बदबू उठ रही होती है ! जिससे अल्फाज़ को घुटन महसूस हो रही होती है !  पहले वो शैतान अपनी लंबी जुबान से अल्फाज के गालों को चाटता है  फ़िर हंसते हुए उसे सीधा उठा कर पहाड़ी से नीचे ठण्डे पानी के झील में फेंक देता है ! अल्फाज ऊंचाई से सीधा नीचे झील के जमे हुए पानी में जा गिरती है जिससे उससे काफी चोटें आती है !
पानी के अंदर गिरते ही झील के ऊपरी सतह पर बर्फ की परत बन जाती है और अल्फाज नीचे ठंडे  पानी में डूबने लगती है ! उसके साथ साथ उसके कोट के पैकेट से एनवेलप से सारे फोटो निकल कर पानी में फैल जाते हैं !
“कौन था वो शैतान जिसने इस तरह मुझे पहाड़ से सीधा नीचे फेंक दिया कही ये वही शैतान तो नहीं जिसके बारे में नूर मुझे बता रहा था ! , या अल्लाह यह अब कैसी मुसीबत है ! मेरे सर में बहुत तेज दर्द हो रहा और  खून भी बहुत ज्यादा बह रहा है , आ आ और यह झील का पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा है मैं तो अपने हाथ पैर भी इसमें हिला नहीं पा रही हूं ,मैं तो इसमें जम सी गयी हूँ  , शायद ये मेरा कोई वहम नही है..!  आज मैं सच में किसी नदी के पानी  में हूं,  उस शैतान के जरिए  मैंने खुद देखा मुझे नीचे फेंकते हुए ! अम्मी मुझे माफ कर देना आप मैं आप से मिलने नहीं आ पाई , आप मुझे माफ कर देना .., अम्मी मैं बहुत बुरी हूं , मैंने खुद को आप से जुदा कर दिया ! अम्मी मुझे माफ कर देना !” अल्फाज दिल ही दिल रोते हुए कहती है !
अल्फाज चारो तरफ नजर घुमा कर देखने की कोशिश करती है , सारे फोटो उसके चारो तरफ बिखरे पड़े होते है पानी में, तभी  उसे एक फ़ोटो में वही शैतान हंसता हुआ दिखता है , दूसरे फोटो में उसे राही उसके आगे पीछे अपनी दुम हिलाता खेलता हुआ दिखता है ,तीसरे में  हायात उसके लिए नाश्ता लेकर आती हुई , तो कुछ फोटो में वो अपने दोस्तों के साथ हँसती हुई ! कुछ में उसका शौहर काशिफ उसे बालों से पकड़े मारते हुए , और एक फोटो में उसे उसका दोस्त आमिर उदास खड़ा  दिखता है जो मानों कह रहा हो !
“मिस्बाह बहुत घुटन होती है जब आप तैरना ना जानते हो और आप पानी में डूब रहे हो ,हम उस वक़्त बहुत तड़पते है जब हम सांस लेना चाह रहे हो और हम सांस नहीं ले पाते है ..! पानी हमारे आंख ,नाक, कान और मुंह से हमारे  जिस्म के अंदर जा रहा हो और हम एक एक सांस लेने के लिए पानी में हाथ पैर मार रहे हो तड़प रहे हो  !  जब हम  जीना चाहते हो मगर हम मर जाते है ! बहुत घुटन होती है बहुत ही ज्यादा जब हम एक हादसे का शिकार होजाते है !”
इन सब सोचों के बीच से गुजरते हुए अल्फाज फिर एक बार धीरे धीरे माजी की गालियों में घूमने लगती है !


क्रमश :  Tamanna_Ae_Khaam- 11

Previous Part : Tamanna_Ae_Khaam- 09

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