Tamanna_Ae_Khaam-01

तमन्ना खाम-01

हम में से हर एक की जिंदगी अंगिन्त ख्वाहिशों के बोझ तले दबी होती है, जिनमें से ज्यादतर ख्वाहिशें हमारी अधूरी ही रहती है! जिनके पूरा ना होने का दर्द हमें कभी कभी अंदर से खोखला कर जाता है!

उसी तरह हम में से हर एक इंसान का कोई ना कोई माज़ी जरूर होता है…., कुछ के माज़ी में खूबसूरत यादें, मोहब्बत, गम, ख़ुशी समायी होती है, तो किसी के माज़ी में सिर्फ और सिर्फ होती है कड़वी यादें और दर्द, अपने किसी अज़ीज़ की जुदाई, और होते है हादसात…! और कहते है के अच्छी नौकरी वा करोबार होना ही अच्छे रिज़्क़ की निशानी नही होती बल्के एक अच्छा परिवार, सच्चा दोस्त, सच्ची वा पाक मोहब्बत, एक अच्छी सुकून भरी जिंदगी भी आप के रिज़्क़ (जिविका, जीवनधार) का हिस्सा होती है!

हम सभी अक्सर दुवाओ में ” अल्लाह तबरक् वा ताआला ” से बहतर जिंदगी और बहतर रिजक और हादसातों से बचने की दुआ मांगते है…! मगर क्या हो…? अगर एक हादसा आप की पुरी की पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दे!…

तमन्नाखाम जिसका मतलब होता है , ऐसी ख्वाहिश जिसका पूरा होना लगभग ना मुमकिन हो..!

कहानी शुरू होती है खूबसूरत पहाड़ों में बसा सिक्किम की राजधानी शहर गैंग टॉक में पहाड़ी पर बने एक छोटे से लकड़ी के खुबसूरत मकान से जिसमे 32 साला मिस्बाह अजीज खान अकेले रहा करती है…! समान्य कद, गोरा रंग छोटे बॉय कट बाल, भूरी मगर गहरी आँखे..! अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी किसी नोवेल को पढ़ रही होती है! खिड़की से आती जाती ठंडी हवाये कमरे में अपनी मौजूदगी बार बार बयाँ कर रहे होते है! मिसबाह को गैंग टॉक में लोग अल्फाज के नाम से जानते है क्यों के…? उसने अपना असल नाम किसी को बताया ही नही होता है!

अल्फाज गैंगटोक् में एक छोटी सी होम डेकोरे की शॉप चला रही होती है उसके दुकान का वक़्त सुबह नौ बजे से दोपहर के चार बजे तक की ही होती है ! बाकी बचे वक़्त वो पास के पहाड़ों में घूमना और अपनी ग़ज़लों और कहानियो को लिखना नोवेल पढ़ना पसंद करती है! उसे यहाँ रहते हुए तकरीबन छे साल गुजर चुके होते है! मगर आज तक किसी ने भी उसे किसी से ना मिलते जुलते देखा ना बात करते! ना ही गंगटोक में उसका कोई दोस्त होता है…! ऐसा नही है के उससे लोगों ने दोस्ती करना या बात करने की कोशिश नही की, बल्के अल्फाज ही कभी किसी को अपनी जिंदगी में शामिल होने नही देती है…!

दोस्त के नाम पर एक छोटा सफ़ेद कुत्ता जिसकी नीली आँखे काफी जादुई लगती है…! उस कुत्ते को उसने पालतू तो नही बनाया था मगर एक रोज उसके चोट पर दवा लगाने से और उसे रोज खाना देते देते कुत्ते ने उसे अपना दोस्त मान लिया होता है और फिर क्या…? वो जहा जाती उसके पीछे अपनी दुम हिलाता चला जाता मगर अल्फाज को तो मानो इस दुनिया में किसी की मौजूदगी पसंद ही ना हो…! इस नये ज़माने में जहाँ लोगों के पास न्यू टेक्नोलॉजी के मोबाइल फोन होते है वही अल्फाज अपने पास कीपैड मोबाइल रखती है…!

हाँ मगर उसके साथ उसका ड्सलर कैमरे जरूर होता है जिसमे वो उस खूबसूरत से जगह के खूबसूरत नज़ारों को क़ैद करती रहती है! और कभी कभी अपने कुत्ते राही की फोटो क्लिक कर लेती है क्यों के राही हर वक़्त उसके आगे – पीछे दुम हिलाता घूमता रहता है जब तक वो घर से बाहर होती है…! कुत्ते का नाम राही अल्फाज ने इसलिए रखा होता है क्यों के…? उसे यह लगता है यह भी एक मुसाफिर है इसकी जिंदगी का जो एक रोज इसे छोड़ चला जायेगा बाकि सभी अपनों की तरह!

अपने कुत्ते के साथ अल्फाज पहाड़ में छुप रहे सूरज को और आस पास के खूबसूरत नज़ारों को देख रही होती है ! हल्की हल्की सर्द हवाएं अल्फाज के वजूद को छू कर उसे सुकून बख्श रही होती है..!

फिर अपनी एक डायरी निकाल कलम से लिखना शुरू करदेती है!

“इन पहाड़ों को कभी गौर से देखा कर बड़े चुपचाप है खड़े,

बेचारे आखिर दिल बहलाने किधर जायेंगे!

कभी इनकी खामोशी कहती है,

कभी मेरे लब बोल जायेंगे!

आखिर रिश्ता इनका और मेरा अकेलेपन का है!

भीड़ तो दोनों के पास बहुत नज़र आयेंगे!

वक़्त गुज़र गया वो लोग भी गुज़र गये!

यादें ना जाने क्यों अब भी उनका रास्ता हमे दिखाएंगे!

डर ऐसा लगा रिश्तों से भाग आयी मैं बहुत दूर इन पहाड़ों में खुद को छुपाने,

नज़र जो आगये अपनों को जो,

वो मुझे फिर बर्दास्त ना कर पायेंगे!

बड़ी जज़्बाती हो जाती थी अक्सर,

समझाया था बहुत खुद को,

जरा संभल कर बोला कर रिश्ते बिखर जायेंगे!

लफ्ज़ बुरे थे मेरे इसलिए चुप करा दिया अब खुद को,

अब लोग मेरी लिखी तहरीर को मेरी “अल्फाज” बुलाएंगे!

जिस वजूद ने मेरे मुझे तन्हा कर दिया…!

ऐ पहाड़ी वादियाँ उस वजूद को हम तुझमे दफना आयेंगे! “

सूरज के ग्रोब (डूबने) होने के साथ साथ अल्फाज अपनी शायरी को मुकम्मल कर चुकी होती है!

“Hey will you just excuse me… Actually, i wanna take some pictures from here so if you don’t mind can you please move a side! ” एक अंग्रेज टूरिस्ट आकर अल्फ़ाज़ से कहता है!

“Yes, Sure sir ” वो कहती हुई फ़ौरन अपनी डायरी बंद कर कोट के अंदर रखती है और अपना कैमरा उठा कर चल देती है…! राही भी उसके पीछे पीछे दुम हिलाता चल देता है!

अलफ़ाज़ के घर पहुँचते पहुँचते रात का आसमाँ मुकम्मल काला पड़ चुका होता है…! सर्द हवाओ के थपेड़े उसके कानों में गूंज रहे होते है…! आस पास के सभी घरों में लाइट जल चुकी होती है पहाड़ो में बसे घरों में जलने वाले रौशनी का नजारा कुछ यूँ होता है के मानो एक साथ कई जुगनु जगमगा रहे हो, वैसे आज छोटी दिवाली होती है इसलिये लोगों ने अपने घर को दुल्हन की तरह सज़ाया होता है…! अल्फाज अपने DSLR कैमरे में इस खुबसुरती को समेटते हुए घर पहुँच जाती है…! और अपने घर की लाईट भी जला देती है जिससे वो भी इस खूबसूरत दुनिया का छोटा सा हिस्सा बन जाती है..!

आज दिवाली होती है…! शहर गैंगटोक दियों और रंग बिरंगी छोटी छोटी बल्बो से रौशन रहता है ..! चारों ओर जिधर भी नजर पड़े जगमगाती हुई बल्बे और रौशन मिट्टी के दिये दिखाई पड़ते है…! साथ साथ पठाखो की आवाज़ माहौल को काफी खूबसूरत और खुशनुमा बना रही होती है…!

अलफ़ाज़ शाम के 4 बजे अपनी दुकान बंद कर अपनी स्कूटी पर सवार दिवाली के मौके पर दुल्हन की तरह सजे अपने शहर को देखने के लिए निकल पड़ती है , साथ में वो अपने साथ एक पार्सल ले लेती है जो के उसके किसी कस्टमर का अर्जेंट ऑर्डर होता है…! जिसे वो टाइम पर पहुँचा कर शहर की सड़कों पर निकल पड़ती है…!

अलफ़ाज़ को रंग बिरंगी जगमगाती रौशनी देखना काफी पसंद होता है…! वो दिवाली के मौके पर सजे सड़क किनारे पेड़ो और इमारतों की टीम टीमाटी रोशनियाँ देखते देखते गली मोहल्ले से गुजरते हुए, जाने अंजाने में अपने शहर से काफी दूर तक निकल आती है…! अब दिवाली की रोशनियाँ उसे कम दिखने लगती है..,सड़क के चारों दोनों तरफ उसे एक दो इमारतों पर ही रंग बिरंगी रौशनी के बल्ब नजर आरह होते है..! बाकी घणा जंगल नुमा रास्ता होता..! तब जाकर उसे एहसास होता है के वो दिवाली की सजावट देखने के चक्कर में अपने शहर से सायद काफी दूर निकल आयी है…!

वापस किधर से जाना है उसे समझ ही नही आरहा होता है…! चारों तरफ सड़कों पर पानी और पेड़ के मोटे मोटे तने बिखरे होते है…! ऐसा मालूम हो रहा होता के सायद यहाँ कुछ वक़्त पहले काफी बारिश हुई हो..!

“अभी मैं जिधर से आयी हूँ उधर तो मौसम बिल्कुल साफ था, मगर इधर देखने से ऐसा मालूम होता है मानों काफी बारिश हुई हो ! ” अल्फ़ाज़ खुद से कहती है…!

फिर जगह कौनसी है…? पता करने के लिये वो अपने जीन्स के पॉकेट से मोबाइल निकालती है…!

“अरे यार मैं भी एक नंबर की बेवकूफ हूँ, भला कीपैड मोबाइल से लोकेशन का पता कैसे चलेगा…? और इसमें तो नेटवर्क भी नही है..! लगता है मुझे अपनी ज़िद छोड़ कर एक बढ़या एंड्रॉइड मोबाइल फोन ले लेना चाहिये कम से कम लोकेशन ट्रैक करने में मदद मिलती..! आखिर मैं कब तक इन सब चीजों से भागती रहूंगी और आज तो बूरी तरह फस भी गई हूं…!अब मैं क्या करू..?” अल्फाज अपने माथे पर अपना कीपैड मोबाइल मारते हुए कहती है…!

अल्फ़ाज़ के मोबाइल में इस वक़्त शाम के 6 बज रहे होते है…! और शाम जैसे जैसे ढल कर रात में तब्दील होरही होती है…! वैसे वैसे अल्फाज की घबराहट बढ़ रही होती है..!

कुछ सोचते हुए अलफ़ाज़ मोबाइल वापस जीन्स के पॉकेट में रख कर स्कूटी स्टार्ट कर एक तरफ जाती है…, जहाँ कुछ कच्ची पक्की इमारत होती है .., पास ही कुछ बच्चे दिवाली के पटाखे जला कर खुश होरहे होते है..!

“बेटा जरा सुनो इधर आप मुझे बताओगे यह कौनसी जगह है..? ” अलफ़ाज़ एक बच्चे से पूछती है..!

मगर वो बच्चा कोई जवाब देने के बजाये अल्फाज के स्कूटी के पास आकर पटाखे लगा देता…! और जब वो पठाखे की आवाज़ से डर जाती है तब वो बच्चे उसपर जोर जोर से हँसने लगते है…!

अल्फ़ाज़ को उन बच्चों पर बहुत जोर का गुस्सा आता है मगर वो उन्हे बिना कुछ कहे स्कूटी स्टार्ट कर रास्ते की तलाश में लग जाती है…! वो जिधर भी जाती है उसे रास्ते पर बारिश का पानी घुटने तक भरा हुआ दिखता है…! जिसे देख अल्फाज की घबराहट बढ़ती ही जाती है.., साथ साथ रात का अंधेरा भी अपनी पैर पसार रहा होता है !

“यह कौन सी जगह आकर फस गई मैं ..? लगता है अब पूरी रात यही भटकते रह जाऊँगी..! या अल्लाह मेरी मदद कर..! ” अलफ़ाज़ खुद में बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ती है तो उसे एक रास्ता दिखता है ..! जिसमें थोड़ा कम पानी भरा होता है मगर उस रास्ते के बीचों बीच में पेड़ के मोटे मोटे तने गिरे हुए होते है ..!

अल्फाज को सइड से थोड़ी सी जगह दिखती है जिधर से उसकी स्कूटी आराम से निकल सकती है…! वो पहले वही पर रुक अपने चारों तरफ गौर से देखती है!

” यह सड़क कुछ बहतर और इस सड़क पर पानी भी कम जमा हुआ है मैं इधर से ही निकल जाती हूँ सायद रास्ता मिल जाए…! ” कहते हुए अलफ़ाज़ स्कूटी चालू कर धीरे धीरे आगे बढ़ा देती है!

जैसे ही अल्फ़ाज़ पानी जमे उसे सड़क पर थोड़ा सा आगे की ओर बढ़ती है स्कूटी के साथ स्लिप कर ते हुए सड़क पर जमे पानी के ऊपर जोर से गिरती है..! अचानक से पूरा मंजर बदल जाता है.., जो थोड़ा सा पानी सड़क पर जमा हुआ रहता है अब वो एक गहरे नदी में तब्दील हो चुका होता है..!

उसके हाथ से स्कूटी छूट कर उससे पहले नदी की गहराई में नीचे की तरफ जाती उसे दिख रही होती है…! साथ साथ अलफ़ाज़ भी पानी में नीचे डूबती जारही होती है…! उसका पूरा जिस्म बे जान सा पानी में समाता जा रहा होता है..!

“यह कैसे होगया..? ये…यह मामूली सा बारिश के पानी से भरा मामूली दिखने वाला रस्ता अचानक नदी कैसे बन गया..? कैसा जादू है ये, मैं तो इसमें डूबते ही जारही हूँ और…और मेरा स्कूटी तो मुझसे पहले ही नीचे की तरफ गहराई में चली गई है…! ना जाने कितनी गहरी है यह नदी..! मेरे चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी फैला हुआ है..!मुझे साँस लेने में अब तकलीफ हो रही है…!

आ..आ..और धीरे धीरे यह पानी मेरे नाक,कान और मुँह के अंदर जारहा है…! मेरा दम घुट रहा है…! क्या… क्या मैं अब मर जाऊंगी…? और अगर मैं डूब गयी तो मेरे घर वाले कैसे ढूंढेंगे मुझे , उन्हे कौन बतायेगा के अब मैं इस दुनिया में नही रही ..? और कौन निकलेगा मेरी मुर्दा जिस्म को यहां से, क्या मुझे मिट्टी नसीब होगी और क्या मेरी नमाजजनाजा पढ़ाई जाएगी..? और अगर मेरी बॉडी ही नही मिली तो…?

आ.. आ.. और अम्मी…?

वो तो रो रो कर बुरा हाल कर लेगी अपना अगर ज्यादा दिनों तक उन्हें मेरी कोई खबर नहीं मिली तो…, मैंने तो आज उनसे एक बार भी बात तक नही की.., और अम्मी को बताया भी नही के अम्मी आप मेरी पूरी दुनिया हो मैं आप से बहुत प्यार करती हूँ…! और मेरे दोस्तों का क्या..? उन्हे कौन देगा खबर के मैं मर गयी..? उन्हें तो मालूम भी नही है के मैं कहाँ हूँ..? और आज तक किससे भाग रही हूं..? ?

अजीब सी घुटन हो रही मुझे। ..! खुदा के वास्ते को निकालो यहां से मुझे..! नाजाने यह नदी कितना गहरा है ..? जो मैं अभी तक नीचे जा ही रही हूँ .., नीचे तो अंधेरा बढ़ता ही जा रहा है..! और….. और अब तो दिवाली की वो जगमगाती रोशनियाँ भी नही दिख रही जिसे देखने के चक्कर में मैं यहाँ आ गिरी। ., यह पानी मेरे नाक मुँह से मेरे पेट के अंदर जारहा है मेरा पेट फूल रहा और दम घुट रहा है..! मुझे साँस लेने में दिक्कत आरही है। ., सा… सायद अब मैं मर रही हूँ…. मुझे बहुत डर लग रहा है..! या अल्लाह मेरी मदद कर , मेरी मदद कर! “

डूबते हुए अलफ़ाज़ के दिमाग में सारी बातें हलचल मचाने लगती है वो खुद को डूबने से बचाने के लिए जोर जोर से अपने हाथ पैर पानी में मारने लगती है ! पानी की गहराई में नीचे की ओर जाते हुए उसे सौ तरह के ख्याल आने लगते है .., उसकी मोती जैसी सफेद दिखने वाली आँखे खुली होती है जो खुद को डूबने का खौफनाक मंज़र देख रही होती है और दिमाग माजी के ख्यालों की दुनिया में गोते लगाने लगता है!

माज़ी की यादों में (Past)……..

मिसबाह कॉलेज से पढ़ाई कर अपने घर आती है तो पड़ोस में रह रहे उसके मामा के घर से शादी में आये महमानो के शोरगुल की आवाज़ काफी तेज मिसबाह को आरही होती है…! वो फ़ौरन नहा कर फंक्शन में पहनने के लिए अलमीरा से कपड़े निकाल रही होती है..!

“मिस्बाह । मिस्बाह … कहा है बेटा तू…? जल्दी तैयार होकर चली जा जाकर खाना खाले मामी तुझे खाने के लिये बुला रही हैं…! और हां आज हल्दी भी है…! तो एक ही बार हल्दी वाले कपड़े पहन कर जाना और पहले जा जाकर खाना खा लेना…?” मिसबाह की अम्मी उसे आवाज़ देते हुए कहती है…!

“ठीक है अम्मी मैं बस तैयार ही हो रही हूं..!” मिसबाह ने कहा..!

मिसबाह के मामा के घर में उसके ममेरे भाई की शादी होती है..! इसलिए उसके और उसके घर के सभी लोगों की दावत उसके मामा के घर पर होती है !

मिसबाह पिले रंग की कुर्ती और सफेद सलवार उसपर सफेद दुपट्टा खुले बाल कर , वो तेज़ तेज़ कदमों से चलते हुए अपने मामा के घर के दरवाजे पर पहुँचती है !

जैसे ही वो अपने मामा के घर में कदम रखती है उसे कोई पीछे से आवाज़ लगा कर देर से आने की वजह पूछती है…!

“आज इंपोर्टेंट क्लास था तो कॉलेज गयी थी इसलिये देर हो गयी आने में…! ” कहते हुए मिसबाह जैसे ही आगे की तरफ बढ़ती है…, अचानक सामने से वाश रूम से टॉवल पहने अपने बालों के पानी को हाथ की उँगलियों से झरकते हुए नहा कर आते हुए आमिर से टकरा जाती है जो के उसके काजिन का काजिन और मिसबाह के बचपन का दोस्त होता है…!

कुछ देर के लिये मिसबाह को खुद की धड़कने बिल्कुल शांत और सांसे तेज चलती हुई महसूस होरही होती है…!

“अरे अरे जरा देख कर चलो मिसबाह…!” कहते हुए आमिर मिसबाह को घबराता देख शरारत से मिसबाह को अपने बाहों में जकड़ लेता है…! दोनों एक दूसरे के आँखों में कुछ पल के लिये खो से जाते है…!

इससे पहले के आमिर की नानी उन दोनो को ऐसी हालत में देखती जो के सामने से आरही होती है! आमिर फ़ौरन ही मिसबाह को अपने बाहों की गिरफ्त से आज़ाद कर शरारत से उसे आँखे मरता है और कहता है…! ” मेरी साँसें छीनने का इरादा है क्या तुम्हारा…? भला ऐसे कौन गले मिलता है…! माना के कई साल बाद मिल रहे है हम फिर भी इस तरह..?”

मिसबाह बिना कुछ कहे आमिर को मोहब्बत भरी निगाहों से खड़ी निहार रही होती है…!

” लगता है आज तुम्हे मुझे नंगा देखते रहने का इरादा है…! इसलिये तुम्हारी नज़र मुझे से हट ही नही रही…! तुम कहो तो खुद को इस टॉवेल से भी आज़ाद करदूँ…! ” मिसबाह को खामोश पाकर आमिर मज़ाकिये अंदाज़ में अपने टॉवल को खोलनी की एक्टिंग करते हुए कहता…!

“नही…नही…. तुम्हारा ना दिमाग खराब होगया है, एक तो ऐसे नंगे होकर अचानक से मेरे सामने आजाते हो ऊपर से तुम्हारी यह घटिया हरकतें सुधर जाओ वरना बहुत पिटोगे मेरे हाथों से…!” मिसबाह हड़बड़ते हुए गुस्से में कहती हुई वहाँ से चली जाती है…!
“लो अब मैंने क्या करदिया…? खुद ही मुझसे टकराती है और खुद नाराज हो जाती है…!” आमिर कहता हुआ कमरे में कपड़े पहनने के लिये चला जाता है…!

हल्दी के फंक्शन से पहले सभी लोग बारी बारी से खाना खाते है..! मिसबाह भी अपनी कुछ कजिन बहनों के साथ खाने के लिए बैठ जाती है ..!

आज खाना खाते वक़्त भी मिसबाह का सारा ध्यान आज होने वाले हसीन वाक़ये पर रहता है…! उसे अपने मन में आमिर को लेकर एक अलग जज़्बात का पैदा होना महसूस हो रहा होता है..!

खाना खाने के बाद मिसबाह अपने काजिन् बहनो के साथ जाकर घर के बाहर एक चबूतरे पर जा बैठती है…! तभी कोई ड्ज में, फिल्म ‘ ये जावानी है दीवानी ‘ का गाना प्ले करता है!

“इक दिन कभी जो खुद को तराशे

मेरी नज़र से तू ज़रा, हाय रे

आँखों से तेरी क्या-क्या छुपा है

तुझको दिखाऊँ मैं ज़रा, हाय रे

इक अनकही सी दास्ताँ “

तभी आमिर मिसबाह के पास आकर उसके पीठ से पीठ लगा कर बैठ जाता है और अपने दोनों हाथों को फैला कर फिल्मी अंदाज़ में गाने के बोल दोहराने लगता है…!

” कहने लगेगा आईना, सुभानल्लाह…

जो हो रहा है, पहली दफ़ा है, वल्लाह

ऐसा हुआ

सुभानल्लाह…

” आमिर…. तुम्हारी तबियत तो ठीक है यह किया कर रहे हो तुम…? किसी ने देखा तो मुझे गलत समझेंगे ” मिसबाह चौंकते हुए कहती है…! मगर मन ही मन वो आमिर के इस अंदाज़ पर मुस्कुरा रही होती है…!

“मिस्बाह गौर से सुनो वही कह रहा हूँ जो मुझे बहुत पहले कहना चाहिए था! अच्छी लगने लगी हो तुम मुझे यार और घबराओ नही शादी के माहौल में लोग इतना ध्यान नही देते, मुझे नही लगता कोई तुम्हे गलत समझेगा… इतनी क्यूट जो हो तुम…! ” अमीर धीमे से मिसबाह के कानों में कहता है…!

” आमीर कैसी बातें कर रहे हो तुम., यह मत भूलो के तुम मुझसे उम्र में 4 साल छोटे हो…! ” मिसबाह आमीर को धीमे से जवाब देती है…!

“तो क्या हुआ…? मैं नही मानता यह उमर के फाशलों को, बस जो महसूस किया कह दिया..!

तभी आमिर और मिसबाह दोनों की नजर सामने खड़ी उनसे बड़ी बहन पर पड़ती है ..! जो दोनों को घूर कर देख रही होती है ..!

“अरे बापरे चलो अब मैं सच में जाता हूँ वरना अगर सच में आपी को हमपर शक होगया तो…! हम दोनों की क्लास लग जायेगी पूरी महफिल में..! ” आमिर धीमे से हँसता हुए कहता हुआ मिसबाह को अपने गंधे से टक्कर देते हुए चला जाता है…!

“या अल्लाह ये लड़का भी ना अजीब है..! ना जाने ये सब क्या होरहा है…? आमिर अचानक से ऐसे क्यों बेहवे कर रहा है…? और यह आपी ना जाने अब क्या क्या गलत सोचेंगी मेरे बारे में..?साथ में ये आमिर के मेरे पास आते ही मेरी साँसे इतनी तेज क्यों चलने लगती है…? उसे देख कर यह कैसे अजीब से जज़्बात जन्म लेने लगे है मेरे दिल में…! शायद कोई वहम हो रहा है मुझे..! ” मिसबाह खुद में सोचती है…!

कुछ ही देर में हल्दी का फंक्शन शुरू हो चूका होता है सभी बारी बारी से होने वाले दुल्हे को हल्दी लगा रहे होते है…! काफी खुशनुमा माहौल बना होता है…! अमीर लड़को की साइड खड़ा, लड़कियों के हुजूम में चुपचाप खड़ी मिसबाह को बार बार मोहब्बत से निहार रहा होता है…! मिसबाह की नज़र भी बार बार आमिर पर पड़ रही होती है…!

जब भी वो आमिर की तरफ देखती तो वो शरारत से उसे आँख मार देता है…! जिस से मिसबाह थोड़ा घबरा कर अगल बगल देखने लगती के कहीं किसी ने देखा ना हो …! तभी आमिर का बड़ा भाई दिलशाद मिस्बाह के बराबर में खड़ा हो जाता है और उससे बातें करने लगता है…! उन्हें हंसते हुए बातें करता देख आमिर चिढ़ कर वहाँ से चला जाता है…!

थोड़ी देर में दिलशाद के जाते ही मिसबाह आमिर को अपने आस पास ना पाकर आमिर को ढूंढने लगती है ..! वो उसे ढूंढते हुए हर कमरे में देखती है मगर आमिर उसे कही नही दिखता है , आखिर में जब वो छत पर जाती है तो छत के एक कोने में आमिर उसे मुँह बनाये कुर्सी पर खामोश बैठा दिखता है…!

“हम्म…तो जनाब यहां है ..! तुम अकेले यहां क्या कर रहे हो ..? और इस तरह हल्दी के बीच में से अचानक गायब क्यों हाेगए थे…?” मिस्बाह अपनी सांसों को दुरुस्त करते हुए नाराज़गी से कहती है…!

” तुम्हे इससे क्या मतलब मैं कहा हूँ…? और क्या कर रहा हूँ…? तुम जाओ भाईजान से बात करो, तुम्हे तो उनसे बातें करना और खुद वो भी बहुत पसंद है ना…! ” आमिर नाराज़गी में जवाब देता है…!

“ओ तो ये बात है …! तुम possesive हो रहे हो..! देखो आमिर यह सच है के मैं दिलशाद को स्कूल टाइम में पसंद करती थी और दिलशाद भी मुझे पसंद करता था मगर अब हम दोनों के बिच ऐसी कोई बात नहीं है., Now we are just friend और हमें एक दूसरे से बात करना पसंद है मगर सिर्फ एक दोस्त की तरह वैसे आमिर मैं तुम्हे सफाई क्यों दे रही हूँ…? ” मिस्बाह चिढ़ते हुए कहती है…!

“मुझे तुम्हारे और भाईजान के बारे में सब पता है…, तुम दोनों बस दिखावा करते हो अच्छे दोस्त होने का असल में अब कुछ भी नही रहा तुम दोनों के बीच..! वैसे एक बात बोलूं वो तुम्हारे लायक भी नही है..! उनको तुम्हारी कदर ना कल थी और ना ही आज है..!वैसे भी अच्छा ही हुआ तुम्हारा उनसे ब्रेकअप हो गया वरना मेरा रास्ता कभी साफ़ नहीं होता …!” आमिर कहता है…!

” आमिर तुम ये कैसी बातें कर रहे हो …? मैं तुमसे उमर में बड़ी हूँ…, मैं तुम्हारे और अपने रिश्ते के बारे में सोच भी नही सकती..! वैसे भी हमारे परिवार वाले कभी हमारे रिश्ते के लिये तैयार नहीं होंगे…, और तुम अभी पढ़ रहे हो और मेरे घर वाले मेरी पढाई के साथ मेरा रिश्ता भी देख रहे है, so please हमारे बीच जो भी दोस्ती का रिश्ता है उसे इनसब से खराब ना करो !” मिस्बाह समझाते हुए कहती है !

” हाँ तो मैं कौन सा.? सच में तुमसे मोहब्बत करता हूँ , मैं भी तो मज़ाक कर रहा हूँ और देखो तुम भी मेरी बातों में आगयी !” आमिर अपनी हंसी में अपने दिल में उठ रहे मिसबाह के लिए मोहब्बत को छुपा देता है और उसे मजाक का नाम दे देता है…!

“हम्म्म…! सोच रहा हूं तुम्हारी शादी का भी सागुन बना दू.., तुम्हारे मासूम से चेहरे पर हल्दी का उबटन लगा कर ..!

आमिर शरारत से अपने हाथ में छुपाये हुए हल्दी के उबटन को मिस्बाह के चेहरे पर लगा कर भागते हुए कहता है…!

“अआ… आमिर के बच्चे तुम बहुत बुरे हो…! इस बार मैं नहीं छोडूंगी तुम्हे…! ” कहते हुए मिस्बाह उसके पीछे दौड़ लगा देती है…!

मौजूदा वक़्त में (Present)

अल्फ़ाज़ अपने माज़ी के सोचों में गुम नदी के पानी की गहराईयों में समाते जा रही होती है…! उसके हाथ और पैर बिलकुल साकित हो चुके होते है….! और उसने साँसे लेना अब लगभग छोड़ दिया होता है, उसकी आँखे बंद होते हुए एक रौशनी को अपनी करीब आते हुए देखते देखते बंद हो जाती है….!

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Shama Khan

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